बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के लिए अगर कोई सबसे बड़ी मांग की और इसके लिए अभियान और आंदोलन चलाया तो वह थी विशेष राज्य का दर्जा। नीतीश यह मांग 2005 से करते आ रहे हैं लेकिन 16 साल बीतने के बावजूद उन्हें इस मांग और आंदोलन में अब तक नाकामी मिली है।
बड़े-बड़े आंदोलन और चुनावी भाषण से चलती हुई उनकी यह मांग अब एक वाक्य तक सीमित हो गयी है। पिछले हफ्ते ‘नीति आयोग’ की गवर्निंग काउंसिल की बैठक में नीतीश कुमार ने यह मुद्दा कितने अनमने ढंग से उठाया इसका पता उनके सरकारी बयान से लगता है।
बीस फरवरी को जारी सरकारी बयान में नीतीश कुमार के हवाले से बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे के बारे में बस इतना लिखा है- “नीति आयोग की पहले की बैठकों में भी हमने राज्य से संबंधित जरूरी बातें रखी हैं, चाहे वह विशेष राज्य के दर्जे से संबंधित हो या राज्य के हित से संबंधित अन्य मसले हों।”
इसके बाद जब पत्रकारों ने पूछा कि विशेष राज्य के दर्जे की आपकी मांग पर प्रधानमंत्री ने क्या कहा तो नीतीश कुमार ने जवाब में वही बात दोहरायी कि हम यह मांग बराबर उठाते रहे हैं। उनके जवाब में यह बात नहीं थी कि प्रधानमंत्री ने क्या जवाब दिया।
तेजस्वी का सवाल
इस बारे में 2018 में तेजस्वी यादव ने एक ट्वीट किया था कि नीतीश जी आप विशेष राज्य का दर्जा किससे मांग रहे हैं तेजस्वी ने लिखा था कि क्या आपको पता है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी आपकी मांग को पूरी तरह नकार चुके हैं। तब एक इंटरव्यू में गडकरी ने कहा था कि विशेष राज्य के दर्जे का प्रावधान संविधान में नहीं है और अगर एक राज्य को यह दर्जा दिया गया तो बाकी राज्य भी यह मांग करेंगे।
रोचक बात यह है कि इंटरव्यू में यह पूछा गया था कि जब आप बिहार में सरकार चला रहे थे और केंद्र में यूपीए की सरकार थी तब तो बीजेपी ने इस मांग का समर्थन किया था तो उन्होंने कहा कि हम चुप थे।
राजनीतिक मांग
बिहार के राजनीतिक टीकाकार मानते हैं कि बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग एक राजनीतिक मांग है और नीतीश समय-समय पर अपनी राजनीतिक ज़रूरत के हिसाब से इसे धीमे या जोरदार अंदाज से उठाते हैं।
जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी तो नीतीश ने इस मांग को हर प्लेटफाॅर्म पर उठाया और इसी तरह 2015 से 2017 के बीच जब राज्य में उन्होंने आरजेडी व कांग्रेस के साथ सरकार बनायी तो भी इस मांग के लिए आवाज़ बुलंद की।
वोट की राजनीति में कमजोर पड़ चुके नीतीश के लिए तब तक इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाना मुमकिन नहीं जब तक वह बीजेपी के साथ सरकार में रहेंगे। जानकारों का मानना है कि अगर केंद्र में गैर बीजेपी सरकार रहती तो नीतीश बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग को कहीं बेहतर और सशक्त अंदाज में उठाते।
बिहार के राजनीतिक हालात पर देखिए वीडियो-
नीतीश के तर्क
वैसे, नीतीश ने ‘नीति आयोग’ की 2019 में हुई गवर्निंग काउंसिल की बैठक में भी यह मांग उठायी थी। तब उन्होंने कहा था कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर केंद्र प्रायोजित योजनाओं में बिहार का हिस्सा बढ़ेगा जिसका लाभ यह होगा कि राज्य अपने संसाधनों का इस्तेमाल विकास व कल्याण के दूसरे कार्यक्रमों में कर सकेगा।
उन्होंने यह भी कहा था कि इससे जीएसटी के भुगतान में भी राज्य को राहत मिलेगी और राज्य में निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा; तब बिहार में उद्योग और रोज़गार का दरवाजा खुलेगा। नीतीश यह बात कहते आये हैं कि राज्य की विकास दर अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर होने के बावजूद बिहार में प्रति व्यक्ति आय काफी कम है। इसे बेहतर करने के लिए ज़रूरी है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाए।
नीतीश बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के पक्ष में रघुराम राजन कमेटी की सिफारिशों का उल्लेख भी करते थे लेकिन अब वह इसकी चर्चा भी नहीं करते। उनके अनुसार इस कमेटी ने देश के दस सबसे पिछड़े राज्यों में बिहार को भी शामिल किया था।
मनमोहन सरकार का इनकार
भारत सरकार की अंतर मंत्रालय टास्क ग्रुप ने 2005 में यह बताया था कि बिहार के 38 जिलों में 36 जिले पिछड़े हैं जो देश में सबसे ज्यादा है लेकिन 2011 में मनमोहन सिंह की सरकार ने इस पांच आधारों पर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से इनकार कर दिया था। उस समय नीतीश ने कहा था कि इस ग्रुप ने पूर्वाग्रह के कारण ऐसा निर्णय सुनाया है।
अब बदले राजनीतिक हालात में नीतीश बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग महज औपचारिकता निभाने के लिए करते हुए दिखते हैं।
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