सीएए- एनआरसी विरोधी आन्दोलन तय करेंगे असम का चुनाव?

निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को असम सहित चार राज्यों और एक केंद्र- शासित क्षेत्र में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों की तारीखों का एलान कर दिया। निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बताया कि असम में इस बार तीन चरणों में विधानसभा चुनाव संपन्न होंगे। 

सुनील अरोड़ा ने कहा कि राज्य में पहले चरण का मतदान 27 मार्च को, दूसरे चरण का मतदान 1 अप्रैल को और तीसरे चरण का मतदान 6 अप्रैल को होगा। मतगणना सभी राज्यों में 2 मई को होगी। उल्लेखनीय है कि असम विधानसभा का कार्यकाल 31 मई को समाप्त हो रहा है।

असम में विधानसभा की 126 सीटे हैं। इसमें सत्तारूढ़ बीजेपी के 60 विधायक हैं। कांग्रेस के पास 26 सीटें हैं। वर्तमान में राज्य का कार्यभार मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल संभाल रहे हैं। 126 विधानसभा सीटों में से अनुसूचित जाति के लिए आठ और अनुसूचित जनजाति की 16 सीटें हैं। 

इस बार, 100 पार!

बीजेपी, जो असम के तीन दलों के गठबंधन का नेतृत्व करती है, को आगामी चुनावों में राज्य की 126 सीटों में से 100 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। मोदी लहर को भुनाते हुए, उसने 2016 के चुनावों में सहयोगी असम गण परिषद (एजीपी) और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ मिलकर 86 सीटें जीती थीं। इसने पिछली कांग्रेस शासन के दौरान सत्ता-विरोधी लहर और कथित रूप से बड़े भ्रष्टाचार के आक्रोश को भुनाया था।

इस बार का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह अलग है। बीजेपी को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, वह विपक्षी दलों कांग्रेस और अल्पसंख्यक-आधारित अखिल भारतीय यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट(एआईयूडीएफ) के गठबंधन के रूप में आ रही हैं।

बीजेपी से ज़्यादा वोट शेयर

2016 के चुनावों में बीजेपी ने 84 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसका वोट शेयर कांग्रेस के 31% की तुलना में 29.5% था। कांग्रेस ने 122 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 26 पर जीत दर्ज की थी।

बीजेपी-एजीपी-बीपीएफ का संयुक्त वोट शेयर 41.9% था। उधर अगर कांग्रेस-एआईयूडीएफ के वोट शेयर को जोड़ दिया जाये तो वोट शेयर हो जाता है 44%। 17 निर्वाचन क्षेत्रों में जो बीजेपी ने चुनाव जीता था, कांग्रेस और एआईयूडीएफ का संयुक्त वोट बीजेपी से अधिक था। साथ ही, कांग्रेस और एआईयूडीएफ का संयुक्त वोट एजीपी की दो सीटों से अधिक था जो उन 14 सीटों में से थी जो क्षेत्रीय पार्टी ने जीती थीं।

बीजेपी-विरोधी वोट

कांग्रेस और एआईयूडीएफ ने पिछले चुनाव में कोई गठबंधन नहीं किया था। अब जब वे एक साथ लड़ेंगे और सीट साझा करने की व्यवस्था होगी, तो इससे बीजेपी- विरोधी वोटों के विभाजन को रोकने की संभावना है। 

लेकिन ये पहला चुनाव होगा जिसमे असम के तीन बार के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई की उपस्थिति नहीं होगी। उनकी ग़ैरहाज़िरी से कांग्रेस को कितना नुक़सान होगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। बीजेपी ने तरुण गोगोई को पद्म पुरस्कार देकर असम के मतदाताओं को संदेश देने दी कोशिश की है। 

 - Satya Hindi

तरुण गोगोई, पूर्व मुख्यमंत्री

सीएए-एनआरसी का असर

उधर, नागरिकता कानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ हुए आंदोलनों का कितना असर चुनाव में पड़ेगा, यह देखना भी दिलचस्प होगा। मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के ख़िलाफ़ हुए आंदोलन की कोख से असम में दो दलों का गठन हुआ। इन दोनों दलों ने इस साल अप्रैल-मई में राज्य में एक साथ विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए हाथ मिलाया है।

असम जातीय परिषद (एजेपी) और राइजर दल (आरडी) ने सत्तारूढ़ बीजेपीऔर कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन को चुनौती देने के लिए अपने गठबंधन में और अधिक दलों को शामिल करने की योजना बनाई है। 

एजेपी के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने आरडी प्रमुख अखिल गोगोई से मुलाकात की, जिन्हें दिसंबर 2019 से गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में सीएए के ख़िलाफ़ आंदोलन के समय विरोध प्रदर्शन में उनकी भूमिका के लिए गिरफ़्तार किया गया है, जहाँ उनका इलाज चल रहा है। 

 - Satya Hindi

आरडी फ़ैक्टर

लुरिनज्योति गोगोई ने कहा, “यह पहली बार है जब हम अपनी पार्टियों के गठन और पदाधिकारियों के चुनाव के बाद मिले हैं। अखिल गोगोई को लंबे समय तक अलोकतांत्रिक तरीके से हिरासत में रखा गया है और उनको तुरंत रिहा किया जाना चाहिए।”

उन्होंने आगे कहा, “हम अपनी पार्टी की स्थापना के बाद से ही कह रहे हैं कि एजेपी और आरडी दोनों एक साथ चुनाव लड़ेंगे और बैठक के बाद हम असम के लोगों को बता देना चाहते हैं कि गठबंधन का निर्णय अंतिम है।”

लुरिनज्योति गोगोई ने कहा कि क्षेत्रीय दल सत्तारूढ़ बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को उखाड़ फेंकने के साथ-साथ कांग्रेस के प्रभाव को भी नकार देंगे, जिसने ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, आंचलिक गण मोर्चा और तीन वामपंथी दलों के साथ गठबंधन किया है।

उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, “कुछ लोग अगले चुनावों को त्रिकोणीय मुक़ाबले के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि यह राष्ट्रीय और सांप्रदायिक दलों के खिलाफ क्षेत्रीय ताक़तों के बीच दो-पक्षीय मिकाबला होगा। हमारी तरह अखिल गोगोई भी कहते रहे हैं कि क्षेत्रीय दलों का कोई विकल्प नहीं है, और यह सुनिश्चित करने के लिए कि क्षेत्रीय वोटों में कोई विभाजन नहीं है, हमें साथ आने की ज़रूरत है।"

कई दलों से गठजोड़

लुरिनज्योति गोगोई ने कहा कि दो पहाड़ी जिलों कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ में सीटों के लिए स्वायत्त राज्य माँग समिति के साथ भी उनका गठजोड़ होगा।

बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के साथ भी बातचीत चल रही है, जो राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन का एक हिस्सा है। दिसंबर में बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल के चुनाव में यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल के साथ गठबंधन के बाद बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट बीजेपी का दामन छोड़ सकता है।

 - Satya Hindi

दिसंबर 2019 में सीएए के ख़िलाफ़ आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले दो छात्र संगठनों ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद ने एजेपी का गठन किया है।

कृषक मुक्ति संग्राम समिति, एक किसान संगठन जिसने सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, ने आरडी का गठन किया है।

अब देखने वाली बात यह होगी की इस नये गठबंधन की वजह से बीजेपी और कांग्रेस गठबंधन में से किसको ज़्यादा नुक़सान होगा और क्या यह नया गठबंधन राज्य की राजनीति में कोई नयी इबारत लिख पायेगा



https://ift.tt/2FhwIf9
Previous
Next Post »

Please don't enter any spam link in comment box ConversionConversion EmoticonEmoticon