‘मछुआरों के लिए कोई मंत्रालय नहीं’- बार-बार झूठ बोल गरीबों को भरमा रहे राहुल गाँधी, ‘पालतू मीडिया’ नहीं कर रहा फैक्ट-चेक

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कॉन्ग्रेस के पूर्व (और भावी भी) अध्यक्ष राहुल गाँधी लगातार एक ही झूठ को कई बार दोहराए जा रहे हैं। वो भी ऐसा झूठ, जो देश के सामने प्रत्यक्ष दिख रहा है कि झूठ है और उसके हजार सबूत मौजूद हैं। उनकी इस ढिठाई का कारण क्या है? उन्हें पता है कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग और फैक्ट-चेकर्स उनकी गोद में बैठे हुए हैं, इसीलिए कोई उनसे सवाल पूछना तो दूर, उनके झूठ को उलटा छिपाएगा ही।

राहुल गाँधी ने कोल्लम में दोहराया पुडुचेरी वाला झूठ

राहुल गाँधी केरल के वायनाड से सांसद हैं। हालिया केरल दौरे में उन्होंने उत्तर भारतीयों को नीचा दिखाते हुए भारत के दो हिस्सों में फूट डालने की कोशिश की। उससे पहले उन्होंने पुडुचेरी में दावा किया था कि जैसे भूमि के किसान होते हैं, ऐसे ही वो मछुआरों को समुद्र का किसान मानते हैं। साथ ही उन्होंने पूछा था कि जब भूमि के किसानों के लिए मंत्रालय है तो फिर समुद्र के किसानों के लिए दिल्ली में मंत्रालय क्यों नहीं?

अब उन्होंने यही बात केरल के कोल्लम स्थित थांगसेरी बीच पर वहाँ के मछुआरों से बात करते हुए दोहरा दी है। उन्होंने उन मछुआरों से कहा कि दिल्ली में आपके लिए बोलने वाला कोई नहीं है और उनकी सरकार बनते ही वो पहले काम यही करेंगे कि मछुआरों के लिए एक अलग से मंत्रालय बनाएँगे, जिससे उनके मुद्दों की सुरक्षा हो सके और उनका बचाव हो सके। राहुल एक ऐसी चीज का वादा कर रहे हैं, जो पहले से मौजूद है।

हम आगे इस ‘गोदी मीडिया’ की बात करेंगे, जो इस पर सवाल नहीं उठाता। लेकिन, उससे पहले सच्चाई समझ लेते हैं। बेगूसराय से कन्हैया कुमार को हरा कर सांसद बने गिरिराज सिंह पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य विभाग के केंद्रीय मंत्री हैं। जब एक पूरा का पूरा मंत्रालय और विभाग मत्स्य पालन, मछुआरों और मछली से होने वाले व्यापार को समर्पित है, फिर भी राहुल गाँधी बार-बार एक ही झूठ को क्यों दोहरा रहे हैं?

जानिए क्या है सच, क्योंकि ‘पालतू मीडिया’ आपको नहीं बताएगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही मई 2019 में इस मंत्रालय का गठन किया था। किसानों की आय दोगुनी करने में कहीं पशुपालक और मत्यपालक पीछे न रह जाएँ, दुग्ध और मछलियों से व्यापार करने वालों का समुचित ध्यान रखा जा सके, उनके लिए योजनाएँ बनाई जा सके, इसीलिए इस मंत्रालय का निर्माण हुआ। जो मंत्रालय मोदी सरकार ने बनाया, उसके अस्तित्व को नकार कर राहुल गाँधी गरीबों को दिग्भ्रमित कर रहे हैं।

एक और बात जानने लायक है। मत्स्य विभाग को भी दो भागों में बाँटा गया है। एक ‘मरीन फिशरी’, जिसके अंतर्गत भारत की लंबी समुद्री सीमा के आसपास रहने वाले मछुआरों की भलाई के लिए कार्य किया जाता है और एक है ‘इनलैंड फिशरी’, जिसके अंतर्गत नदियों और तालाबों में मत्स्य पालन करने वालों को बढ़ावा दिया जाता है। नवंबर 2019 में ‘वर्ल्ड फिशरीज डे’ के अवसर पर गिरिराज सिंह ने कहा था कि वियतनाम में मत्स्य उत्पादन काफी अच्छा है, वहाँ से प्रेरणा ली जा रही है।

मछुआरों को वैज्ञानिक तकनीक से मत्स्य पालन और मछली पकड़ने की विधि सिखाई जाती है। उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्हें नाव मुहैया कराए जाते हैं। जिन राज्यों में पानी की अधिकता है, वहाँ उनका उपयोग मत्स्य पालन में कैसे हो इसके लिए उपाय किए जाते हैं। मछलियों के स्टोरेज के साथ-साथ डिजीज कंट्रोल पर भी कार्य हो रहा है। किन राज्यों की मछलियाँ स्पेशल हैं, उनके एक्सपोर्ट की व्यवस्था की जाती है।

एक और आँकड़ा है जो ध्यान देने लायक है और ये पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य विभाग के केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने ही बताया है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि मोदी सरकार ने ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY)’ बनाई है, जिसके तहत 20,500 करोड़ रुपए का मास्टर प्लान तैयार किया गया है। जबकि, भारत की स्वतंत्रता से लेकर 2014 तक इस विभाग के लिए मात्र 3682 करोड़ ही खर्च किए गए थे। आप खुद ये अंतर देख लीजिए।

आप ‘मत्स्यपालन विभाग’ की सरकारी वेबसाइट पर जाकर डिटेल्स पढ़ सकते हैं, जहाँ साफ़-साफ़ लिखा है कि ये मंत्रालय ताजा तथा खारा जल में जलकृषि का विस्तार और मछुआरा समुदाय आदि के कल्याण के लिए समर्पित है। वहाँ बताया गया है कि ये मंत्रालय अंतर्देशीय तथा समुद्री मत्स्यन व मात्स्यिकी से जुड़े मामलों को भी देखता है। आप यहाँ इससे जुड़े विभिन्न ख़बरों, कार्यक्रमों और योजनाओं की जानकारी ले सकते हैं।

‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY)’ की भी अलग से वेबसाइट बनाई गई है, जहाँ अब तक खर्च की गई पूरी राशि के आँकड़े स्पष्ट रूप से दिए गए हैं। आप यहाँ पाएँगे कि इतने कम समय में ही 7 लाख लोगों को रोजगार या इसका लाभ मिला है। ढाई हजार करोड़ रुपए की राशि खर्च की जा चुकी है। इसका लक्ष्य है कि अगले 5 वर्षों में मछलियों का उत्पादन 70 लाख टन हो, 1 लाख करोड़ रुपए का एक्सपोर्ट हो और 55 लाख लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार मिले।

कोई फैक्ट-चेक नहीं, ट्विटर के लिए भी ये डिस्प्यूटेड नहीं

अब आते हैं इस पर कि आखिर क्यों राहुल गाँधी खुलेआम झूठ फैला रहे हैं। उन्हें पता है कि जब कोई भी मीडिया संस्थान उनके बयान के बारे में खबरें फैलाएगा तो फिर ये नहीं बताएगा कि इस झूठ का सच क्या है। कोई ये तक नहीं बताएगा कि वो झूठ बोल रहे। ये मीडिया पोर्टल उनके बयानों को ‘आरोप’ या ‘वादा’ लिखकर कर एक सामान्य बयान की तरह दिखाएँगे। सभी उनके पॉकेट में हैं, इसीलिए वो निर्भीक होकर एक झूठ हजार जगह हजार बार बोल सकते हैं।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स भी उनके हाथ में हैं। ट्विटर कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ट्वीट को ‘सेंसेटिव’ मार्क कर देता है, वहीं कभी अमित शाह की डिस्प्ले पिक्चर हटा देता है। ट्विटर तुरंत अपने नैरेटिव के खिलाफ जाने वाले तथ्यों पर ‘This Claim Is Disputed’ लिख देता है लेकिन राहुल गाँधी के इस खुलेआम झूठ पर वो कुछ नहीं करेगा। यही ट्विटर भारत सरकार के नोटिस के जवाब में कोर्ट बन कर संविधान की मनमानी व्याख्या कर रहा है।

आपको ‘गोदी मीडिया’ या ‘पालतू मीडिया’ का इससे अच्छा उदाहरण कहाँ मिलेगा? जिन मछुआरों के बीच राहुल गाँधी अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके ये झूठ फैला रहे हैं, उन्हें सच्चाई से रूबरू कौन कराएगा? वो ख़बरों में भी देखेंगे तो सच्चाई बताने वाला कोई नहीं। मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए बेशर्मी से खुलेआम झूठ का इस्तेमाल हो रहा है। इसे ठीक करने के लिए भाजपा को समुद्री किनारों पर उतरना पड़ेगा।

ऊपर से राहुल गाँधी तमिल और मलयालम भाषी राज्यों में ये झूठ फैला रहे हैं। समस्या ये है कि ‘पालतू मीडिया’ राहुल गाँधी के झूठ पर परत डाल कर लोगों को और भरमा रहा है। भारत की सुदूर समुद्री सीमाओं पर रह रहे उन गरीबों के बीच झूठ का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। इससे देश का नुकसान हो रहा है। गरीबों को उनके फायदे की योजनाएँ समझाई जानी चाहिए, ये नहीं कि उन्हें उनसे दूर किया जाना चाहिए।

हाँ, बोलने वाले ये भी बोल सकते हैं कि मछुआरों के लिए अलग से कोई एकल मंत्रालय नहीं है। तो क्या फिर महिलाओं के लिए भी कोई मंत्रालय नहीं है, क्योंकि वो तो ‘महिला एवं बाल विकास’ मंत्रालय है। फिर तो किसानों के लिए भी कोई मंत्रालय नहीं है अलग से क्योंकि वो तो ‘कृषि एवं किसान कल्याण’ मंत्रालय है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लिए कोई भी मंत्रालय नहीं है अलग से, क्योंकि वो ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ है।

झूठ फैलाने और आँकड़े बदलने का रहा है राहुल का पुराना इतिहास

इसकी काट के लिए भाजपा को भी अपने नेटवर्क को सक्रिय करना होगा। भाजपा या उससे सम्बद्ध संगठनों के जितने भी कैडर हैं, उन्हें समुद्री सीमाओं पर भेज कर बताया जाए कि उनके लिए अलग मंत्रालय है और उनके लिए कौन सी योजनाएँ चल रही हैं। मत्स्य विभाग भी स्थानीय भाषाओं के अख़बारों और मीडिया के माध्यम से जागरूकता फैलाए। इस झूठ की काट के लिए बहुत मेहनत करनी होगी क्योंकि मीडिया का एक बड़ा धड़ा उनका पालतू हो रखा है।

याद कीजिए, जब 2019 लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गाँधी राफेल को लेकर हर जगह आँकड़े बदल देते थे और मीडिया उनसे सवाल पूछने की बजाए लंबे-लंबे लेख लिख कर उनका साथ दे रहा था। कृषि कानूनों को लेकर भी उन्होंने असम और राजस्थान की रैलियों में आँकड़े को सीधा दोगुना कर डाला। हर मामले में उनके झूठ पर मीडिया परत ही चढ़ाता रहा है लेकिन कभी उनके झूठ का फैक्ट-चेक नहीं किया गया।



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