क्या योग गुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि ने कोरोना की दवा की खोज कर ली है या वह दवा नहीं, बल्कि ‘सपोर्टिंग मेज़र’ यानी किसी दूसरी दवा के साथ ली जाने वाली एक और चीज है
स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्द्धन और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की मौजूदगी में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रामदेव व कंपनी से जुड़े अधिकारी बाल कृष्ण ने दवा की खोज का दावा किया, लेकिन इस कथित दवा के पैकेट पर उसे ‘सपोर्टिंग मेज़र’ कहा गया है, दवा नहीं।
'कोरोना की दवा'
योग गुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि ने दावा किया है कि उसने कोरोना की दवा की खोज कर ली है। उसने ट्वीट कर कहा, ‘गौरव का क्षण! कोरोना की दवा बनाने की पतंजलि के वैज्ञानिकों की कोशिशें आज कामयाब हो गईं।’Moment of pride!!
— Patanjali Ayurved (@PypAyurved) February 19, 2021
Efforts of scientists at Patanjali to make corona medicine have been successful today#Patanjalis_EvidenceBased_Medicine4Corona #PatanjaliCoronil pic.twitter.com/qKWgKUjfch
‘सपोर्टिंग मेज़र’
लेकिन कंपनी ने जो ट्वीट किया और उसके साथ दवा के पैकेट की जो तसवीर लगाई है, उस पर दवा नहीं लिखा हुआ, स्पष्ट रूप से ‘सपोर्टिंग मेज़र’ लिखा हुआ है। सपोर्टिंग मेज़र का मतलब यह हुआ कि आप कोई दवा पहले से ले रहे हैं या कोई और इलाज करवा रहे हैं तो उसके साथ इसे भी ले सकते हैं।25 रिसर्च पेपर!
रामदेव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कोरोना पर कंपनी के 25 शोध प्रबंध यानी रिसर्च पेपर हैं। इसलिए पतंजलि पर कोई अब सवाल नहीं कर सकता।
उन्होंने यह भी दावा किया कि इस दवा को सीओपीपी-डब्लूएचओ-जीएमपी सर्टिफ़िकेट मिला हुआ है यानी, डब्लूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन से सर्टिफ़िकेट मिला है। लेकिन डब्लूएचओ किसी दवा को कोई सर्टिफ़िकेट नहीं देता है। यह काम हर देश में उसकी अपनी एजेंसी करती है, जो दवा पर अध्ययन कर, उसके डेटा का विश्लेषण कर यह निष्कर्ष निकालती है कि वह दवा ठीक है या नहीं। अमेरिका में फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफ़डीए) यह काम करता है।
ड्रग्स कंट्रोल अथॉरिटी की अनुमति!
भारत में किसी दवा को सर्टिफकेट देने का काम डीजीसीए यानी ड्रग्स कंट्रोल अथॉरिटी करता है। लेकिन ऐसा करने के पहले वह दवा बनाने का दावा करने वाली कंपनी से ट्रायल यानी दवा परीक्षण के विस्तृत आँकड़े लेता है।
दवा परीक्षण के तीन चरण यानी स्टेज होते हैं। सबसे अहम दूसरा चरण होता है, जिसमें इसकी जाँच की जाती है कि मनुष्यों पर उस दवा से वह रोग ठीक होता है या नहीं। तीसरे चरण में यह पता लगाया जाता है कि उसके साइड इफ़ेक्ट्स क्या हैं।
यह भी महत्वपूर्ण है कि ये परीक्षण अलग-अलग उम्र, लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य की स्थिति व भौगोलिक परिप्रेक्ष्यों में किया जाता है। इसमें हज़ारों लोग भाग लेते हैं, जिन्हें पहले से पूरी जानकारी देकर उनकी सहमति ली जाती है।
उदाहरण के तौर पर ऑक्सफ़र्ड एस्ट्राज़ेनेका ने कोरोना की दवा में 42,000 से ज़्यादा लोगों पर परीक्षण किया था।
भारत बायोटेक की कोरोना की दवा को ड्रग्स कंट्रोल अथॉरिटी ने इसलिए सर्टिफ़िकेट नहीं दी थी क्योंकि उसने तीसरे चरण के डेटा नहीं दिए थे।
रामदेव या बाल कृष्ण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह नहीं कहा कि भारत में कहाँ, कब और कितने लोगों पर ये परीक्षण किए गए और उनके नतीजे क्या रहे।
154 देशों को निर्यात
बालकृष्ण ने प्रेस कॉन्फ़्रेस में यह भी दावा किया कि इस कथित दवा के 154 देशों को निर्यात की अनुमति मिल गई है। लेकिन उन देशों के नाम नहीं बताए। इसमें इस सवाल का जवाब नहीं दिया गया है कि जिन देशों को यह दवा निर्यात करने की बात कही गई है, क्या वहाँ की ड्रग्स एजेंसी ने उसके प्रयोग की अनुमति दी है।
लेकिन इन बातों या मुद्दों से दूर रामदेव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया, “जब हमने कोरोनिल के जरिए लाखों लोगों को जीवनदान देने का काम किया तो कई लोगों ने सवाल उठाए, कुछ लोगों के मन में रहता है कि रिसर्च तो केवल विदेश में हो सकता है, ख़ास तौर पर आयुर्वेद के रिसर्च को लेकर कई तरह के शक किए जाते हैं। अब हमने शक के सारे बादल छाँट दिए हैं, कोरोना से लेकर अलग-अलग बीमारी पर हमने रिसर्च किए हैं।”
केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा,
“
“पतंजलि के अनुसंधान का देश को फ़ायदा तो होगा ही, पर वैज्ञानिक रूप से यह काम करने के लिए बाबा रामदेव और आचार्य बाल कृष्ण का धन्यवाद करता हूँ, जो अब वैज्ञानिक आधार लेकर फिर जनता के सामने आए हैं। तो निश्चित तौर पर लोगों का विश्वास इस पर और बढ़ेगा।”
नितिन गडकरी, केंद्रीय परिवहन मंत्री
पहले हुआ था विवाद
याद दिला दें कि इसके पहले पतंजलि ने 23 जून, 2020, को कोरोना के लिए 'कोरोनिल' लॉन्च की थी, जिसमें 7 दिन में कोरोना के इलाज का दावा किया गया था। लेकिन वह उसके साथ ही विवादों से घिर गया था।
आयुष मंत्रालय के टास्कफ़ोर्स ने साफ़ शब्दों में कहा था कि पतंजलि इस दवा को 'कोविड-19 के इलाज' की दवा कह कर नहीं बेच सकता है।
टास्कफ़ोर्स ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट में कहा था कि कंपनी पहले मानव पर दवा की जाँच (ह्यूमन ट्रायल) पूरी करे और फिर उसे बेचते समय वही दवा बताए, जिसके लिए उसने मानव ट्रायल की अनुमति माँगी है। कंपनी ने इसे 'खाँसी और बुखार' की दवा के लिए मानव ट्रायल की अनुमति माँगी थी।
क्या कहा था टास्कफ़ोर्स ने
मंत्रालय ने अप्रैल में ही अलग-अलग विभागों के लोगों का एक टास्कफोर्स बनाया था, जिसे दवा बनाने के दावों का अध्ययन और उस पर निगरानी रखना था। इसे उन दावों पर निगरानी करनी थी, जो आयुर्वेद, यूनानी, नेचुरोपैथी, सिद्ध और होम्योपैथी से जुड़ी कंपनियाँ करतीं।
इस टास्कफोर्स में ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइसेंज, इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च, विश्व स्वास्थ्य संगठन और कौंसिल ऑफ़ साइंटिफ़िक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के प्रतिनिधि भी हैं।
एक सरकारी अधिकारी ने 'द प्रिंट' से कहा, 'कमेटी ने सिफ़ारिश की थी कि पहले कंपनी क्लिनिकल ट्रायल पूरा करे। कंपनी को ट्रायल के लिए 120 कोरोना रोगियों का रजिस्ट्रेशन करना था। उसने 100 रोगियों पर ही दवा का परीक्षण किया है।'
एक दूसरे सरकारी अधिकारी ने 'द प्रिंट' से कहा, 'टास्कफोर्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कंपनी इस दवा को कोविड की दवा कह कर बिल्कुल न बेचे।'
इसके पहले राजस्थान सरकार ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस (निम्स), जयपुर को बाबा रामदेव की कोरोना के इलाज के दावे वाली दवा के क्लीनिकल ट्रायल के संबंध में नोटिस दिया था। रामदेव ने कहा था कि कोरोनिल नाम की इस दवा को पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट और निम्स, जयपुर ने मिलकर तैयार किया है। उन्होंने यह भी कहा था कि दवा के क्लीनिकल कंट्रोल ट्रायल के लिए क्लीनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री- इंडिया (सीटीआरआई) की मंजूरी ली गई थी।
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