पंजाब निकाय चुनाव: मतगणना जारी, जनादेश पर नज़र

पंजाब में स्थानीय निकाय के चुनाव के लिए मतों की गिनती हो रही है। सभी की नज़र इस पर है कि किसान आंदोलन के कारण सबसे ज़्यादा प्रभावित इस राज्य के मतदाता कैसा जनादेश देते हैं। 

ये चुनाव इस लिहाज से ज़्यादा अहम हैं क्योंकि अगले साल फ़रवरी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए इन्हें सत्ता का सेमी फ़ाइनल माना जा रहा है। 

राज्य के 2032 वार्डों, 109 नगर पालिका परिषदों और 8 नगर निगमों के लिए 14 फरवरी को मतदान हुआ था। चुनाव में शिरोमणि अकाली दल (बादल), कांग्रेस के बीच मुख्य मुक़ाबला माना जा रहा है। आम आदमी पार्टी भी पहली बार स्थानीय निकाय का चुनाव लड़ रही है। 

अकाली दल-बीजेपी का अलग होना 

10 साल तक अकाली दल के साथ सरकार में रही बीजेपी पंजाब में 2022 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने और सरकार बनाने के दावे कर रही थी। लेकिन किसान आंदोलन के कारण हालात ऐसे बदले हैं कि पार्टी के नेताओं का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। 

स्थानीय निकाय के चुनाव के नतीजों से शहरी मतदाताओं के मूड का भी पता चलेगा। माना जाता है कि शहरी इलाकों में हिंदू मतदाताओं के बीच बीजेपी की उपस्थिति है। हाल ही में कई जगहों पर बीजेपी नेताओं के कार्यक्रमों में पहुंचकर किसानों ने खलल डाला था। देखना होगा कि क्या बीजेपी को शहरी इलाक़ों में समर्थन मिलेगा। 

अकाली दल की साख दांव पर 

दूसरी ओर अकाली दल के सामने भी करो या मरो का सवाल है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ़ 15 सीट मिली थीं। अकाली दल को पंजाब के गांवों के लोगों और किसानों का समर्थन हासिल है। कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के मैदान में उतरते ही अकाली दल ने एनडीए से नाता तोड़कर यह बताने की कोशिश की थी कि उसके लिए किसान पहले हैं और सियासत बाद में। 

अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल अपने कार्यकर्ताओं से किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन करने को कह चुके हैं। लेकिन इससे उन्हें कितना फ़ायदा होगा, इसका पता चुनाव नतीजे आने पर ही चलेगा।

आम आदमी पार्टी भी मैदान में

पंजाब में मुख्य चुनावी लड़ाई कांग्रेस और अकाली दल के बीच ही होती थी लेकिन बीते कुछ सालों में राज्य की सियासत में आम आदमी पार्टी मजबूती से उभरी है। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी ने पंजाब में पूरा जोर लगाया था। हालांकि तब नतीजे वैसे नहीं रहे थे लेकिन चुनाव में अकाली दल-बीजेपी गठबंधन की बुरी हार हुई और आम आदमी पार्टी मुख्य विपक्षी दल बन गई थी। 

अरविंद केजरीवाल और उनकी पूरी पार्टी किसानों के इस आंदोलन में ख़ुद को किसानों का सबसे बड़ा हितैषी बताने में तुली है। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के बॉर्डर्स पर किसानों के लिए ज़रूरी इंतजाम किए और केजरीवाल ने विधानसभा में कृषि क़ानूनों की कॉपी को फाड़कर यह जताने की कोशिश की कि वह किसानों के साथ और कृषि क़ानूनों के विरोध में खड़े हैं। 

अमरिंदर की कड़ी परीक्षा 

अमरिंदर को किसान आंदोलन के कारण बेहद ख़राब हो चुकी राज्य की माली हालत को दुरुस्त करने के साथ ही विदेशों में बैठे सिख अलगाववादी संगठनों की ओर से पंजाब में खालिस्तान को लेकर किए जा रहे दुष्प्रचार को रोकना है और इनकी नकेल भी कसनी है। साथ ही निकाय चुनाव के अलावा विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का परचम फिर से लहराए, इस परीक्षा से भी उन्हें गुजरना है। देखना होगा कि वह इसमें पास होते हैं या फ़ेल। 



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