राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने जनता में जो हलचल पैदा की है, उसे अगर कांग्रेस अपने अगले कार्यक्रमों के जरिए सरकार के विरोध की राजनीति का स्वर बनाने में कामयाब हुई तो 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ही विपक्षी एकता और विपक्षी राजनीति की धुरी बनेगी। साथ ही अगर इस यात्रा में राहुल गांधी अपने छोटे भाई (चाचा संजय गांधी के बेटे) वरुण गांधी को भी किसी मोड़ पर साथ जोड़ सके तो नेहरू इंदिरा का परिवार और विरासत भी एकजुट हो सकेगी।
चर्चाओं के मुताबिक वरुण को इस यात्रा से जोड़ने और राहुल का रुख उनके प्रति नरम करने की कोशिशें पर्दे के पीछे पार्टी और परिवार के कुछ शुभचिंतक कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक वरुण लगभग तैयार हैं लेकिन उन्हें अपने बड़े भाई राहुल गांधी के सकारात्मक संकेत का इंतजार है।
वरुण को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में राहुल कह चुके हैं कि यात्रा में जो भी आना चाहे उसका स्वागत है,जहां तक वरुण का सवाल है वह भाजपा में हैं और उन्हें यात्रा में आने से वहां समस्या हो सकती है। वरुण गांधी के सवाल पर कांग्रेस के एक बेहद वरिष्ठ नेता का कहना है कि देर सिर्फ दोनों भाईयों के बीच इस मुद्दे पर संवाद की है, जिस दिन यह हो गया उसी दिन सारी बर्फ पिघल जाएगी। देखना यह है कि पहल कौन करता है।
क्या राहुल बड़े भाई का फर्ज निभाते हुए छोटे भाई वरुण को गले लगाने के लिए आगे बढ़ते हैं या फिर वरुण खुद बड़े भाई का साथ देने के लिए कोई कदम उठाते हैं।वैसे अगर राहुल पहल करते हैं तो इससे उनकी बदलती छवि में एक बड़ा सितारा और टंक जाएगा और उन्हें परिवार व उसकी विरासत को जोड़ने का श्रेय मिलेगा।
दरअसल यात्रा को मिल रहे जबर्दस्त समर्थन ने कांग्रेस का उत्साह बढ़ा दिया है और अब वह इस यात्रा को ज्यादा समावेशी बनाना चाहती है और साथ ही उसकी एक राजनीतिक कोशिश है कि इस यात्रा के जरिए केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों को एक मंच पर भी लाया जाये। नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने यात्रा में शामिल होकर उसे अपना समर्थन दे दिया है जबकि पीडीपी अध्यक्ष और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी यात्रा का समर्थन करते हुए उसमें शामिल होने की बात कही है।
वहीं उत्तर प्रदेश के दोनों पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और अखिलेश यादव ने यात्रा को शुभकामनाएं तो दी हैं लेकिन उसमें शामिल नहीं हुए।रालोद अध्य़क्ष जयंत चौधरी का रुख भी यही रहा।हालांकि उनके प्रभाव वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यात्रा के समर्थन में जुटी भारी भीड़ में खासी संख्या में रालोद समर्थक भी दिखाई दिए।इनमें कई उत्साही रालोद समर्थक इस तरह राहुल गांधी के पक्ष में बोलते दिखे मानों वो रालोद के नहीं कांग्रेस के कार्यकर्ता हों।
दिलचस्प है कि उत्तर प्रदेश में यात्रा की सफलता को लेकर तमाम किंतु परंतु थे, क्योंकि इस राज्य में कांग्रेस अपना जनाधार खो चुकी है और 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस महज दो सीटें और दो प्रतिशत से कुछ ज्यादा वोट ही पा सकी थी। इसके बावजूद यहां न सिर्फ यात्रा में भारी संख्या में लोग शामिल हुए बल्कि अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख कर्ताधर्ता और विश्व हिंदू परिषद के नेता चंपत राय और राम जन्मभूमि मंदिर के प्रमुख पुजारी सत्येंद्र दास और अयोध्या के संत गोविंद गिरि ने भी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को शुभकामनाएं देकर सबको आश्चर्य में डाल दिया। उत्तर प्रदेश में इस यात्रा में राज्य के एक आंचलिक दल महान दल के नेता केशवदेव मौर्य और उनके समर्थक भी शामिल हुए।
उत्तर प्रदेश के बाद यह यात्रा अब हरियाणा पंजाब और जम्मू कश्मीर जा रही है जहां कांग्रेस का संगठन और जनाधार अभी मजबूत है। यात्रा की सबसे कड़ी और कठिन परीक्षा दिल्ली और उत्तर प्रदेश में ही थी, जहां उसने उम्मीद से काफी ज्यादा कामयाबी हासिल की है।
कन्याकुमारी से चल कर कश्मीर के श्रीनगर तक पहुंचने वाली भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस कितनी मजबूत होगी और राहुल गांधी को कितना फायदा मिलेगा यह सवाल सबकी जुबान पर है और सबके अपने अपने अनुमान हैं। एक धारणा यह है जो भाजपा और उसके समर्थकों के बीच ज्यादा प्रचलित है कि भले ही यात्रा में भीड़ आ रही है लेकिन यह वोट में तब्दील नहीं होगी। इस धारणा को मानने वाले पहले यात्रा की कामयाबी पर ही संदेह कर रहे थे।उनका कहना था कि इतनी लंबी यात्रा कांग्रेस कहां निकाल पाएगी और अगर यात्रा निकली भी तो पदयात्रा तो बिल्कुल ही नहीं होगी क्योंकि खाए पीए थके चुके छके कांग्रेसी पैदल चल ही नहीं सकते।
फिर अगर पदयात्रा निकली भी तो राहुल गांधी तो नाम मात्र के लिए बीच में कुछ दूरी के लिए शामिल होंगे। यह वही अवधारणा थी जो मानती थी कि सोनिया राहुल प्रियंका के रहते कोई गैर गांधी कांग्रेस का अध्यक्ष बन ही नहीं सकता। लेकिन जैसे मल्लिकार्जुन खडगे को अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने यह धारणा तोड़ी उसी तरह राहुल गांधी ने हाफ सफेद टी शर्ट पहन कर कड़कड़ाती ठंड में अपने आलोचकों को करारा जवाब दिया है।
कुछ ऐसी ही बात 2014 से पहले तक यूपीए सरकार के दौरान कांग्रेस और यूपीए के कई अहंकारी नेता किया करते थे कि नरेंद्र मोदी कभी इस देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। क्योंकि सबसे पहले भाजपा में लाल कृष्ण आडवाणी और अन्य वरिष्ठ नेता उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे और अगर भाजपा ने मोदी को आगे करके चुनाव लड़ा तो पार्टी के ही बड़े नेता मोदी को कामयाब नहीं होने देंगे। लेकिन भाजपा ने मोदी को स्वीकार भी किया और मोदी के पक्ष में ऐसी चुनावी आंधी चली कि न सिर्फ पूरा विपक्ष लड़खड़ा कर गिरा बल्कि भाजपा के सभी वरिष्ठ और दिग्गज नेता अप्रासांगिक हो गए। देश का इतिहास बताता है कि जब भी किसी को कमजोर समझ कर कमतर आंका गया, नतीजा हमेशा उलटा हुआ है।
चाहे इंदिरा गांधी को गूंगी गुडिया समझने की तत्कालीन कांग्रेसी दिग्गजों की भूल रही हो या जयप्रकाश नारायण को बूढ़ा मानकर उनकी उपेक्षा इंदिरा गांधी को भारी पड़ी हो या फिर विश्वनाथ प्रताप सिंह की बगावत को राजीव गांधी की कोटरी ने हल्के में लेने की गलती की या फिर 1984 में दो सीटों पर सिमटी भाजपा को इतिहास के कूड़ेदान में चले जाने की नासमझी रही हो, सबके नतीजे हमारे सामने हैं।
कुछ इसी तरह राहुल गांधी को लगातार भारतीय राजनीति में पप्पू से लेकर मजाक का सबसे बड़ा विषय बनाने की एक माहौल बंदी बेहद सुनियोजित तरीके से की गई और देश के अधिसंख्य जनमानस ने इसे मान भी लिया।यहां तक कि कांग्रेस के भी कई नेताओं ने राहुल के नेतृत्व पर सवाल उठाए और कई पार्टी छोड़कर भी चले गए।लेकिन अब जबकि भारत जोड़ो यात्रा की कामयाबी सबके सामने है तब राहुल गांधी की छवि खुदबखुद एक परिपक्व और मेहनती राजनेता के रूप में निखर कर सामने आ गई है।भले ही अखिलेश यादव, मायावती, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और चंद्रशेखर राव जैसे विपक्षी दिग्गज यात्रा के साथ नहीं आए लेकिन यात्रा का खुलकर विरोध या आलोचना करने का जोखिम उन्होंने भी मोल नहीं लिया।
वहीं कन्याकुमारी में डीएमके प्रमुख एम.के.स्टालिन की मौजूदगी, महाराष्ट्र में एनसीपी नेता सुप्रिया सुले, शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे, दिल्ली में सुपर स्टार राजनेता कमला हसन और उत्तर प्रदेश में नेशनल कांफ्रेंस नेता फारुक अब्दुल्ला की यात्रा में मौजूदगी ने कांग्रेस को विपक्ष की धुरी बनाने की पटकथा लिख दी है।जबकि नीतीश कुमार शरद पवार और तेजस्वी यादव जैसे नेता यह साफ कर चुके हैं कि बिना कांग्रेस को विपक्षी एकता की बात निरर्थक है।
यह यात्रा की कामयाबी का ही असर है कि एक दिन पहले कांग्रेस और भाजपा को एक बताने वाले अखिलेश यादव और मायावती ने भी अगले दिन ही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन करते हुए शुभकामनाएं दे दीं।यात्रा के उद्देश्य और मुद्दे ने ही अयोध्या के संतों और विहिप नेता व श्रीराम जन्मूभमि न्यास के सचिव चंपत राय को भी राहुल गांधी और भारत जोड़ो यात्रा की प्रशंसा करने और शुभकामनाएं देने को बाध्य कर दिया।
अरविंद केजरीवाल ने भले ही यात्रा को लेकर खामोशी अख्तियार कर रखी हो लेकिन विरोध करने का जोखिम वह भी नहीं ले रहे हैं।जबकि यात्रा उनके प्रभाव क्षेत्र दिल्ली के बाद अब आम आदमी पार्टी शासित पंजाब में भी जा रही है।
हालांकि राहुल गांधी ने इस यात्रा को लेकर बार बार कहा है कि उनका उद्देश्य राजनीतिक और चुनावी नहीं है।कांग्रेस भी यही दोहरा रही है। लेकिन एक राजनीतिक दल का हर कदम राजनीतिक उद्देश्य से ही होता है।राहुल इस यात्रा के जरिए भारत जोड़ो का एक नया एजेंडा लेकर जनता के बीच गए हैं जो एक तरह से भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे का जवाब है।उनकी कोशिश संघ और भाजपा के हिंदू ध्रुवीकरण की बुनियाद पर बढ़ने वाले हिंदुत्ववादी एजेंडे के मुकाबले भारत की सामाजिक और धार्मिक एकता वाले समावेशी राजनीतिक एजेंडे को खड़ा करना है।
अगर कांग्रेस इसमें सफल होती है तो निश्चित रूप से अगला लोकसभा चुनाव भाजपा के हिंदुत्व के मंदिरवादी एजेंडे और कांग्रेस के सर्व समावेशी एजेंडे जिसे राहुल गांधी के शब्दों में नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलना है, के बीच होगा और तब गैर भाजपा राजनीतिक दलों को किसी एक का साथ चुनना होगा।
जैसा कि कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रमुख जयराम रमेश कह रहे हैं कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो यात्रा पूरी होने के बाद पार्टी में पश्चिम से पूरब पोरबंदर से परशुराम कुंड(अरुणाचल प्रदेश) तक की एक और भारत जोड़ो पदयात्रा करने पर विचार हो रहा है, अगर यह दूसरी यात्रा हुई तो 2023 में इसी यात्रा की अनुगूंज के बीच कई राज्यों के विधानसभा चुनाव होंगे और 2024 के लोकसभा चुनावों तक कांग्रेस की दोनों यात्राओं का प्रतिफल भी सामने होगा।
भारत जोड़ो यात्रा की पहली चुनावी अग्निपरीक्षा अप्रैल 2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनावों में होगी जहां राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के दौरान 18 दिन गुजारे और नवनिर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे भी कर्नाटक से ही हैं।कांग्रेस के इन दोनों फैसलों की पहली परीक्षा दक्षिण के इस राज्य में ही है। यहीं भाजपा के खिलाफ उस विपक्षी एकता के नारे की भी कसौटी है जिसकी परिकल्पना 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए राजनीतिक विश्लेषक करते रहते हैं, क्योंकि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और जनता दल(एस) के रिश्तों का क्या स्वरूप होता है यह देखना भी दिलचस्प होगा।
क्या कांग्रेस के साथ गठबंधन से बनी अपनी सरकार को ऑपरेशन कमल द्वारा गिराकर सत्ता में आई भाजपा के खिलाफ देवेगौड़ा परिवार का गुस्सा चुनावों तक बरकरार रहेगा और वह कांग्रेस के साथ किसी चुनावी गठबंधन में जाएगा या फिर तीस से चालीस सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर त्रिशंकु विधानसभा में किसी से भी समर्थन लेकर फिर अपने नेतृत्व में सरकार बनाने का दांव खेलगा।या फिर कर्नाटक की जनता कांग्रेस या भाजपा में किसी एक के हक में निर्णायक जनादेश देकर भविष्य का राजनीतिक संदेश देगी।
इसके बाद नफरत बनाम मोहब्बत के नारे की अगली चुनावी परीक्षा साल के आखिर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में होगी जहां दो राज्यों में कांग्रेस और एक में भाजपा की सरकार है और दोनों दलों के बीच सीधा मुकाबला है।इन चुनावों के नतीजे ही राहुल गांधी की बदली छवि, भारत जोडो यात्रा के राजनीतिक फलादेश, कांग्रेस और अन्य गैर भाजपा दलों के रिश्तों और अगले लोकसभा चुनावों के चुनावी एजेंडे का फैसला करेंगे।
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