गुजरात दंगों पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री दिखाने की कोशिश के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) ने आठ छात्रों पर कार्रवाई की है। इस खबर से लोग हैरान हैं। डीयू के पूर्व छात्र और कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा है कि डीयू के पूर्व छात्र के रूप में अकादमिक आजादी और विचारों की आजादी के लिए प्रतिबद्ध हूं। मैं इस चौंकाने वाले फैसले से चकित हूं। लोकतंत्र में एक डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए किसी छात्र को दो साल के लिए निलंबित करना एक अपमान है। यह शर्मनाक है। हमें इनके लिए खड़े होना चाहिए।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग का आयोजन 27 जनवरी को भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (NSUI) और भीम आर्मी स्टूडेंट फेडरेशन (BASF) जैसे छात्रों के समूहों ने किया था। कुछ छात्रों को दिल्ली पुलिस ने मौके से हिरासत में लिया। पुलिस को उन छात्रों के नाम और क्लास डीयू द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर से मिले थे।
As a @Delhiuniversit alum committed to academic freedom & independence of thought, I am appalled by this shocking decision. To suspend a student for two years for watching a documentary in a democracy is a disgrace & a betrayal of everything a university should stand for. Shame! pic.twitter.com/cpwVLr9OQb
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) March 21, 2023
यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री के बाद उनके दिल्ली और मुंबई दफ्तरों में आयकर विभाग ने छापे मारे। उस जांच से बीबीसी को अभी भी मुक्ति नहीं मिली है। बीजेपी ने खुलकर इन छापों का विरोध किया है। हालांकि भारत के विपक्षी दलों, नागरिक अधिकार संगठनों, पत्रकार संगठनों ने इस अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया था। बीबीसी का नाम भारत के लोगों में एक विश्वसनीय मीडिया के रूप में लिया जाता है। दुनियाभर में प्रेस और रिलीजन फ्रीडम की रिपोर्ट जब भी आती है, उसमें भारत की स्थिति बहुत दयनीय रहती है। उन रिपोर्ट का अर्थ यही है कि भारत में अभिव्यक्ति की आजादी और धार्मिक आजादी की स्थिति अच्छी नहीं है। डीयू में जिस तरह से 8 छात्रों पर कार्रवाई की गई है, वो इसकी ताजा मिसाल है।
इस घटना की जांच के लिए डीयू द्वारा गठित एक समिति ने दो छात्रों - लोकेश चुघ और रविंदर सिंह पर एक साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया। इनके अलावा स्नेहा सरशाजी, अंशुल यादव, दिनेश कुमार, मिशब, आशुतोष सहित छह अन्य के खिलाफ दंड की सिफारिश की थी। डीयू वीसी योगेश सिंह ने मंगलवार को कहा था कि छह छात्रों को एक पत्र लिखकर खेद जताना होगा। उन्हें कहना होगा कि ऐसा वो दोबारा नहीं दोहराएंगे। यही उनकी सजा है।
इंडियन एक्सप्रेस ने छात्रों से बात की। उन लोगों ने बताया कि इसके बाद उन्हें और उनके माता-पिता को नोटिस भेजा गया, जिसमें प्रॉक्टर के दफ्तर में आने को कहा गया था। अंशुल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा - मैं एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से आता हूं और केवल डीयू में ही पढ़ाई का खर्च उठा सकता हूं क्योंकि प्राइवेट कॉलेज बहुत महंगे हैं। मैंने अपने परिवार को यह कहकर मनाया था डीयू मुझे एक उज्ज्वल भविष्य दे सकता है। अंशुल ने हाल ही में किरोड़ीमल कॉलेज से संस्कृत में मास्टर की पढ़ाई पूरी की है। वह केएमसी के उपाध्यक्ष हैं और कांग्रेस की छात्र शाखा एनएसयूआई से संबद्ध हैं। वह एक दिन प्रोफेसर बनने और अपने परिवार को बेहतर जीवन देने की उम्मीद कर रहे है।
24 साल के अंशुल यूपी के इटावा से हैं और किसान परिवार से आते हैं। उन्होंने ग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट दोनों में फर्स्ट डिवीजन हासिल की, और अब डीयू से पीएचडी की तैयारी कर रहे हैं। अंशुल ने कहा कि इस मामले में मेरे परिवार के पास एक पत्र आया। जिससे वो डर गए। उन्हें प्रॉक्टर के दफ्तर में आने के लिए कहा गया था, लेकिन वो दिल्ली नहीं आ सके। अंशुल ने कहा कि मैंने पहले ही प्रशासन को पत्र लिखकर सब कुछ बता दिया है और अब मैं उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा हूं। उम्मीद है कि मेरी मास्टर डिग्री में कोई देरी नहीं होगी।
केएमसी के छात्र और एनएसयूआई के महासचिव 21 वर्षीय दिनेश भी निशाने पर हैं। दिनेश ने बताया कि मेरे माता-पिता डर गए जब उन्हें पता चला कि मेरे खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। वे उतने पढ़े-लिखे नहीं हैं और ज्यादा नहीं समझते हैं। मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि मैं यहां चीजों को संभाल लूंगा।
दिनेश राजस्थान के जालोर जिले से हैं और किसान परिवार से आते हैं। उन्होंने कहा कि वह स्कूल के टॉपर थे और अपने गांव से उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए दिल्ली आने वाले पहले छात्र हैं। दिनेश राजनेता बनने और समाज में बदलाव लाने का सपना देखते है।
लोकेश और रविंदर को एक साल के लिए डीयू की सभी गतिविधियों में भाग लेने से रोक दिया गया है। लोकेश ने बताया कि मेरे माता-पिता को जब इस बारे में पता चला तो वे मेरे भविष्य को लेकर चिंतित दिखाई दिए। मेरे परिवार को बहुत उम्मीदें हैं कि उनके बेटे को डीयू से पीएचडी की डिग्री मिलेगी और मैं अपने पूरे परिवार में इस शैक्षिक स्तर तक पहुंचने वाला पहला व्यक्ति हूं। इस खबर के बाद से, उनका मनोबल गिर गया है।
लोकेश दिल्ली में पले-बढ़े हैं और एक कारोबारी परिवार से आते हैं। उनकी महत्वाकांक्षा एक अकादमिक बनने की है, लेकिन उन्हें छोटी उम्र से ही राजनीति का शौक रहा है। वह वर्तमान में NSUI के राष्ट्रीय सचिव हैं और 12 वर्षों से संगठन से जुड़े हुए हैं।
लोकेश ने कहा कि हालांकि मैंने स्क्रीनिंग में भाग नहीं लिया लेकिन मेरा मानना है कि किसी की राय का स्वागत करने में कुछ भी गलत नहीं है। मैंने कल डीयू प्रशासन से फिर से अपील की और चिंतित हूं कि दो साल बर्बाद हो सकते हैं..मैं उनके जवाब का इंतजार कर रहा हूं।'
गंगानगर के रहने वाले 24 वर्षीय रविंदर फिलॉसिफी के प्रथम वर्ष के छात्र हैं और भगत सिंह छात्र एकता मंच (बीएससीईएम) से संबद्ध हैं। वह एक किसान परिवार से आते हैं और पहले कानून के छात्र थे। उनकी महत्वाकांक्षा राजनेता बनने की है। उन्होंने कहा - मैंने अभी तक अपने परिवार को डीयू से प्रतिबंधित किए जाने के बारे में नहीं बताया है क्योंकि मैं नहीं चाहता कि वे चिंता करें। BSCEM एक स्वतंत्र संगठन है और किसी भी पार्टी से संबद्ध नहीं है। विरोध के दिन ही हम अपनी असहमति व्यक्त करने के लिए अन्य दलों के साथ आगे आए थे।
इतिहास में एमए द्वितीय वर्ष के छात्र 22 वर्षीय मिशाब, जो केरल से हैं, ने कहा कि उन्हें एक दिन आईएएस बनने की उम्मीद है। वह भी डीयू के निशाने पर हैं, लेकिन कहते हैं कि उन्होंने स्क्रीनिंग में भाग नहीं लिया: “मेरा विरोध से कोई लेना-देना नहीं था, मुझे पुलिस ने सिर्फ इसलिए हिरासत में लिया क्योंकि मैं वहां से गुजर रहा था। मुझे डीयू ने मामूली सजा दी है। मुझे और मेरे परिवार को नोटिस भेजे जा चुके हैं और मैंने लिखित जवाब प्रशासन को दे दिया है। अब मैं उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा हूं।
डीयू में हुई यह घटना कहीं से भी सामान्य घटना नहीं है। देश के अन्य यूनिवर्सिटीज में भी बीबीसी की डाक्यूमेंट्री छात्रों ने देखी है। लेकिन बाकी जगहों पर किसी तरह का एक्शन नहीं लिया गया। डीयू चाहता तो सभी छात्रों को सिर्फ चेतावनी देकर राहत दे सकता था लेकिन उसने छात्रों के करियर के साथ खेलने की कोशिश की है, जो अपने आप में निन्दनीय है।
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