बीबीसी के स्टार एंकर की एक सोशल मीडिया पोस्ट पर बीबीसी में बवाल मच गया है। फ़ुटबॉल एंकर गैरी लाइनकर की सरकारी प्रवासन नीति की आलोचना पर उन्हें निलंबित कर दिया गया। इसके बाद जो हुआ वह और भी अप्रत्याशित है। लाइनकर के समर्थन में बीबीसी के तमाम प्रस्तोताओं ने बीबीसी में जाने से इनकार कर दिया और इसका असर यह हुआ कि बीबीसी का प्रसारण प्रभावित हुआ। इस मामले में वहाँ के प्रधानमंत्री की टिप्पणी आई। और इसके साथ ही बीबीसी की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए गए।
बीबीसी को शनिवार को तब एक गंभीर संकट का सामना करना पड़ा जब उसे अधिकांश खेल कवरेज को हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि प्रस्तोताओं ने लाइनकर के साथ एकजुटता दिखाने के लिए काम करने से इनकार कर दिया।
लाइनकर द्वारा 20 से अधिक वर्षों के लिए प्रस्तुत 'मैच ऑफ द डे' का शनिवार का संस्करण, उनकी अनुपस्थिति के बावजूद सामान्य समय पर प्रसारित किया गया था, लेकिन इसे घटाकर केवल 20 मिनट तक कर दिया गया और बिना किसी टिप्पणी के हाइलाइट्स के शो के रूप में प्रसारित किया गया।
प्रधानमंत्री ऋषि सुनाक ने शनिवार को प्रवासन नीति का बचाव करते हुए एक बयान जारी किया। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि लाइनकर और बीबीसी अपने मतभेदों को समय पर सुलझा सकते हैं।
सुनाक की प्रवासन नीति छोटी नावों में आने वाले शरण मांगने वालों के प्रवेश पर रोक लगाती है। बीबीसी के एंकर ने सुनाक सरकार की इसी नीति की आलोचना की थी।
बीबीसी ने सोशल मीडिया पर लाइनकर की टिप्पणियों के कारण उन्हें यह कहते हुए निलंबित कर दिया कि उसको निष्पक्षता बनाए रखनी है। उसकी दलील है कि बीबीसी में कोई काम करने वाला शख्स किसी मुद्दे पर राय नहीं रख सकता जिससे वह किसी ख़ास पक्ष में दिखे। यानी बीबीसी ने खुद को निष्पक्ष दिखने के प्रयास में इस कार्रवाई को सही ठहराया है।
लेकिन बीबीसी की इस कार्रवाई को ही पक्षपाती क़रार दिया जा रहा है। आरोप लगाया जा रहा है कि क्योंकि लाइनकर ने ऋषि सुनाक सरकार की आलोचना की थी इसलिए उनको सरकार के दबाव में हटाया जा रहा है। बीबीसी पर आरोप यह भी लगाया जा रहा है कि क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उसके लिए कोई मायने नहीं है।
दरअसल, जिस लाइनकर को लेकर यह विवाद हुआ है वह इंग्लैंड के एक पूर्व फुटबॉल कप्तान हैं। रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार वह बीबीसी के सबसे अधिक वेतन पाने वाले प्रस्तोता और फ़ुटबॉल हाइलाइट कार्यक्रम 'मैच ऑफ़ द डे' के एंकर हैं। लाइनकर के निलंबन के आलोचकों का कहना है कि बीबीसी सरकारी दबाव के आगे झुक गया, जिससे राष्ट्रीय प्रसारक की निष्पक्षता के बारे में एक तीखी बहस छिड़ गई।
बीबीसी के महानिदेशक टिम डेवी ने शनिवार को बीबीसी को बताया कि उनका इस मामले में इस्तीफ़ा देने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा,
“
बीबीसी में हम और मैं खुद पूरी तरह से निष्पक्षता के जुनून से प्रेरित हैं, न कि दक्षिणपंथ, वामपंथ या किसी विशेष पार्टी को बढ़ावा देने के लिए।
टिम डेवी, बीबीसी महानिदेशक
डेवी ने कहा कि वह लाइनकर को वापस ऑन एयर करना चाहते हैं और उन्हें एक संतुलन बैठाने की उम्मीद है जो कुछ प्रस्तोताओं को एक ही समय में बीबीसी की तटस्थता बनाए रखते हुए राय व्यक्त करने में सक्षम बनाता हो।
बीबीसी राजनीतिक रूप से निष्पक्ष होने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन इसे कंजर्वेटिव और लेबर पार्टियों की आलोचना का सामना करना पड़ा है कि यह वास्तव में कितना तटस्थ है। यह विवाद खासकर सोशल मीडिया के युग में तब और बढ़ गया है जब हाई-प्रोफाइल प्रस्तोता आसानी से अपनी व्यक्तिगत राय लोगों के सामने रख सकते हैं।
सुनाक के प्रवक्ता ने लाइनकर की टिप्पणियों को 'अस्वीकार्य' बताया और आंतरिक मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने कहा कि वे 'अपमानजनक थे। इसके बाद विपक्षी लेबर पार्टी और मीडिया टिप्पणीकारों ने बीबीसी पर लाइनकर को चुप कराने का आरोप लगाया।
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