कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के मुद्दे पर एक लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है। कांग्रेस जनता के मूड को अपने पक्ष में करने के लिए इस घटनाक्रम को नया मोड़ देने की उम्मीद कर रही है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा सहित शीर्ष कांग्रेस नेताओं ने अगले कदम की योजना बनाने के लिए एआईसीसी मुख्यालय में बैठक की है।
एक राष्ट्रव्यापी विरोध अभियान शुरू हो चुका है। प्रियंका गांधी ने देश के लिए गांधी परिवार के "योगदान" को याद दिलाते हुए आंदोलन का आह्नान किया है।
राहुल गांधी मुद्दा कानूनी से पहले एक राजनीतिक मुद्दा था। यह सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के लिए महत्वपूर्ण है।
पार्टी में इस बात पर चर्चा हुई कि राहुल गांधी की सजा और लोकसभा से अयोग्यता भाजपा सरकार को घेरने और इसे "तानाशाह" सरकार के रूप में चित्रित करने के लिए काफी बड़ा "सबूत" है। राहुल गांधी अब राजनीतिक विमर्श के केंद्र में भी रहेंगे। इसलिए इस मौके को छोड़ना नहीं चाहिए। हालांकि पार्टी के एक वर्ग का मानना है कि अडानी समूह को पीएम मोदी से जोड़ने के राहुल के प्रयास चुनावी रूप से सफल नहीं हो सकते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक सूत्रों ने कहा कि पार्टी मुख्यालय में घंटे भर चली बैठक में नेताओं ने कई सुझाव दिए, जिसके बाद खड़गे ने आंदोलन की रूपरेखा तय करने के लिए एक छोटा समूह बनाया। सूत्रों ने कहा कि एक नेता ने यहां तक सुझाव दिया कि लोकसभा में पार्टी के सभी सांसदों को भी राहुल के साथ एकजुटता दिखाते हुए इस्तीफा दे देना चाहिए। अन्य सुझावों में इस महीने के अंत तक दिल्ली में एक विशाल रैली आयोजित करना, देश भर में नुक्कड़ सभाएं आयोजित करना, सूरत में रैली आयोजित करना और सूरत से भारत जोड़ो यात्रा का अगला चरण शुरू करना शामिल था।
सूत्रों ने कहा कि प्रियंका ने नेताओं से लंबी दौड़ के लिए तैयार रहने को कहा। समझा जाता है कि उन्होंने कहा कि पार्टी को कर्नाटक में चुनावी लड़ाई लड़ने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, यह सुझाव देते हुए कि वहां अगर जीते तो भाजपा को यही वाजिब जवाब होगा।
सोनिया गांधी का विचार था कि "राजनीतिक लड़ाई राजनीतिक रूप से लड़ी जानी चाहिए।" उनका सुझाव था कि न्यायपालिका को राजनीतिक लड़ाई में नहीं लाया जाना चाहिए। कानूनी लड़ाई अलग से लड़ी जानी चाहिए।
कांग्रेस इस बात से उत्साहित है कि विपक्ष ने राहुल के मुद्दे पर एकजुटता दिखाई है। यहां तक कि अलग चल रही टीएमसी, आप और बीआरएस जैसी पार्टियों ने भी राहुल के पक्ष में बयान जारी किए हैं।
बहरहाल, कानूनी लड़ाई पर कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा, 'हमें विश्वास है कि हमें सजा पर स्टे मिल जाएगा। दोषसिद्धि पर रोक इस अयोग्यता के आधार को ही खत्म कर देगी... मसौदा तैयार करने और फाइल करने में समय लगता है। सरकार उसी समय का फायदा उठा रही हैं...। लेकिन हमें कानून पर पूरा भरोसा है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा, '23 मार्च को फैसला, 24 मार्च को अयोग्यता। जिस गति से सिस्टम चला वह आश्चर्यजनक है। जाहिर है, बीजेपी पार्टी या सरकार में नरमी के स्वर नहीं हैं। कुल नतीजा यह है कि संसदीय लोकतंत्र को एक और क्रूर झटका लगा है।
कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा: लोकसभा में 7 फरवरी को राहुल गांधी के अडानी भाषण के 9 दिन बाद, शिकायतकर्ता विधायक (पुर्णेश मोदी) 16 फरवरी को हाईकोर्ट में जाता है और अपने केस को वापस लेता है। लेकिन अचानक 27 फरवरी से यह मामला तेजी से ट्रैक होने लगता है। जिस केस पर एक साल से खामोशी थी, 27 फरवरी को उस पर सूरत कोर्ट में बहस शुरू हो जाती है। 17 मार्च को कोर्ट फैसला सुरक्षित रख लेता है और 23 मार्च को सजा का ऐलान हो जाता है। यह सब कोई संयोग नहीं है।
अभिषेक मनु सिंघवी ने भी यही तथ्य बताते हुए कहा कि शिकायतकर्ता पुर्णेश मोदी ने राहुल गांधी को कोर्ट में फिर से बुलाने के लिए मार्च 2022 में एक आवेदन दायर किया था। हालांकि राहुल जून 2021 में व्यक्तिगत रूप से अपना बयान दर्ज कराने के लिए अदालत में पेश हुए थे। इसके बाद मामला खारिज कर दिया गया था। शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपने केस पर स्टे प्राप्त किया। हाईकोर्ट ने 7 मार्च, 2022 को केस पर स्टे दिया था। अब वही शिकायतकर्ता 11 महीने के अंतराल के बाद, जबकि उसे अपनी शिकायत में कोई दिलचस्पी नहीं थी, तो वह अचानक जाग जाता है। वह हाईकोर्ट से कहता है कि स्टे हटाया जाए, मैं इस केस को फिर से शुरू करना चाहता हूं। हाईकोर्ट ने स्टे को हटा दिया, वह आदमी ट्रायल कोर्ट में वापस चला गया और अब हमें यह फैसला मिला। इस बीच, मजिस्ट्रेट भी बदल गए।
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