राहुल को दोषी ठहराने वाले जज सहित 68 के प्रमोशन पर 'सुप्रीम' रोक

सुप्रीम कोर्ट 68 न्यायिक अधिकारियों को जिला न्यायाधीश बनाने के गुजरात उच्च न्यायालय के फ़ैसले पर शुक्रवार को रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने मामले के अदालत में होने के बावजूद पदोन्नति को अधिसूचित करने के लिए गुजरात सरकार को फटकार लगाई। जिन 68 न्यायिक अधिकारियों का प्रमोशन किया जाना है उनमें वह जज भी शामिल हैं जिन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराया था।

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने न्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति के लिए गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा की गई सिफारिश और उसको लागू करने के लिए गुजरात सरकार द्वारा जारी नोटिस पर रोक लगा दी।

68 न्यायिक अधिकारियों में हरीश हसमुख भाई वर्मा भी हैं, जिन्होंने राहुल गांधी के खिलाफ सजा का आदेश पारित किया था और उन्हें दो साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी।

इस फ़ैसले की वजह से राहुल को अपनी लोकसभा की सदस्यता गँवानी पड़ी। आपराधिक मानहानि के मामले में दो साल की सजा होने के बाद राहुल को लोकसभा के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया। 

2013 में लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया था कि कोई भी सांसद, विधायक या एमएलसी जिसे अपराध का दोषी ठहराया जाता है और न्यूनतम 2 साल की जेल दी जाती है, तत्काल प्रभाव से सदन की सदस्यता खो देता है। तब अदालत ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(4) को रद्द कर दिया था, जिसने निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपनी सजा के खिलाफ अपील करने की अनुमति दी थी, इसे 'असंवैधानिक' बताया था।

राहुल ने कर्नाटक के कोलार में 13 अप्रैल 2019 को एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कह दिया था, 'क्यों सभी चोरों का समान सरनेम मोदी ही होता है चाहे वह ललित मोदी हो या नीरव मोदी हो या नरेंद्र मोदी सारे चोरों के नाम में मोदी क्यों जुड़ा हुआ है।' राहुल के इसी बयान पर आपराधिक मानहानि का मुक़दमा दायर किया गया था।

बहरहाल, बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार जजों के प्रमोशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'यह ध्यान देने की ज़रूरत है कि गुजरात भर्ती नियमों के अनुसार यह योग्यता सह वरिष्ठता के अनुसार है। इस प्रकार हम मानते हैं कि राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए आदेश सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का उल्लंघन करते हैं। हालांकि हम इसका निपटान करना चाहते थे। दवे नहीं चाहते थे कि हम याचिका का निस्तारण करें। चूँकि राज्य सरकार ने अधिकारियों को पदोन्नत करने का निर्णय लिया है। हम पदोन्नति सूची के कार्यान्वयन पर रोक लगाते हैं।'

बता दें कि 28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय में विचाराधीन मामले होने पर न्यायाधीशों के स्थानांतरण पर 18 अप्रैल को एक अधिसूचना जारी करने के लिए हाई कोर्ट से अपना असंतोष जताया था। 



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