मोदी की यूएस यात्रा से पहले आई रिपोर्ट- 'भारत में धार्मिक आजादी खतरे में'

पीएम मोदी जून में अमेरिका जाने वाले हैं और उससे पहले अमेरिकी सरकार द्वारा जारी धार्मिक आजादी रिपोर्ट में भारत के हालात पर चिन्ता जताई गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में धार्मिक समुदायों को निशाना बनाया जा रहा है। हालांकि पिछले चार वर्षों से ऐसी रिपोर्ट हर साल आती है और भारत सरकार ऐसी रिपोर्ट को रिजेक्ट करती रही है। लेकिन इस बार स्थिति अलग है। पीएम मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के निमंत्रण पर अमेरिका की यात्रा करने वाले हैं। पीएम मोदी 21 जून को न्यू यॉर्क में एक योग कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। 22 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति और उनकी पत्नी ने भारतीय प्रधानमंत्री के सम्मान में भोज का आयोजन किया है। 

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक अमेरिकी गृह मंत्री एंथनी ब्लिंकन ने इस रिपोर्ट को सोमवार को जारी किया। भारत समेत जिन देशों में धार्मिक आजादी को खतरे में बताया गया है, उसमें रूस, चीन, सऊदी अरब समेत कोई देश हैं। अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता कार्यालय के राजदूत रशद हुसैन के मुताबिक रूस, भारत, चीन और सऊदी अरब सहित कई सरकारें धार्मिक समुदाय के सदस्यों को निशाना बनाना जारी रखे हुए हैं। उन्होंने कहा कि गृह विभाग ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता 2022 पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है जो दुनिया भर में धार्मिक स्थिति का दस्तावेजीकरण करती है।

यह रिपोर्ट दुनिया भर के लगभग 200 देशों और क्षेत्रों में धार्मिक आजादी की स्थिति के बारे में एक तथ्य-आधारित व्यापक नजरिया प्रदान करती है, एंथनी ब्लिंकन ने कहा-इसका मकसद उन क्षेत्रों को उजागर करना है जहां धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता का दमन किया जा रहा है और वहां कोई जवाबदेही नहीं है। इसलिए हम प्रगति को एक ऐसी दुनिया की ओर ले जाएं जहां धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता हर जगह हर किसी के लिए एक वास्तविकता हो। 

हालांकि ब्लिंकन ने अपनी टिप्पणी में भारत का उल्लेख नहीं किया। इस वार्षिक रिपोर्ट का भारत वाला हिस्सा लगभग पिछले वर्षों की तरह ही है, जो कमोबेश कई मीडिया आउटलेट्स और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा उठाए गए धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के आरोपों का एक दस्तावेज है।

रशद हुसैन ने रिपोर्ट के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि भारत के हरिद्वार में धार्मिक समुदायों के नेताओं ने मुसलमानों के खिलाफ अत्यधिक नफरत फैलाने वाला भाषण दिया। इस घटना का जिक्र करते हुए भारत को बहुलतावाद और सहिष्णुता की अपनी ऐतिहासिक परंपराओं को बनाए रखने का आह्वान किया गया। इसी तरह बर्मा में सैन्य शासन रोहिंग्या आबादी का दमन करना जारी रखे हुए है। तमाम लोग अपने घरों से भाग चुके हैं।

दस्तावेज़ के भारत वाले हिस्से में कहा गया है कि भारत के कई राज्यों में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ सरकारी एजेंसियां दमन और जुल्म का अभियान चला रही हैं। 2022 में ऐसी कई रिपोर्ट सामने आई है। गुजरात में सादी वर्दी में पुलिस ने सार्वजनिक रूप से अक्टूबर में एक त्योहार के दौरान चार मुस्लिम लोगों को पीटा। मध्य प्रदेश सरकार ने अप्रैल में खरगोन में सांप्रदायिक हिंसा के बाद मुस्लिमों के घरों और दुकानों पर बुलडोजर चला दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सितंबर में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने मुस्लिम समुदाय के पांच प्रमुख सदस्यों से उनकी चिंताओं को सुनने और मुसलमानों और हिंदुओं के बीच सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के बारे में चर्चा करने के लिए मुलाकात की। भागवत कथित तौर पर मुस्लिम और हिंदू समुदायों के बीच संबंधों को सुधारने के उद्देश्य से बैठकों को जारी रखने की बात कहते रहते हैं। भागवत ने अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख उमर अहमद इलियासी से भी मुलाकात की। लेकिन कई मुस्लिम समूहों ने भागवत की इस पहल को प्रचार का नाटक करार देते हुए 2024 के संसदीय चुनावों की तैयारी से जोड़ा। 

रिपोर्ट में कहा गया है, 2021 में भी भागवत ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि देश में हिंदुओं और मुसलमानों के साथ धर्म के आधार पर अलग व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए और गोहत्या के लिए गैर-हिंदुओं को मारना हिंदू धर्म के खिलाफ एक कृत्य है। लेकिन जैसा कि बताया गया है कि मुसलमानों के साथ जो घटनाएं होती हैं वो इन बयानों को झुठला देती हैं। 

अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के अध्यक्ष नूरी तुर्केल ने एक बयान में कहा कि अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट उल्लंघनकर्ताओं को जवाबदेह ठहराने और वैश्विक धार्मिक स्वतंत्रता स्थितियों में सुधार करने की लड़ाई में एक बहुमूल्य उपकरण है। इस रिपोर्ट के साथ, अमेरिकी गृह विभाग पूरी दुनिया को बताता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अदिकारों के लिए प्रतिबद्ध है।



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