
एक तरफ देश में वंदे भारत, तेजस जैसी प्राइवेट ट्रेनों का शोर है। प्रधानमंत्री आए दिन कहीं न कहीं ऐसी प्राइवेट ट्रेनों को हरी झंडी दिखाते रहते हैं लेकिन रेल हादसों को रोकने के लिए केंद्र सरकार आजतक कोई ब्लूप्रिंट लेकर सामने नहीं आई। अभी मार्च 2023 में नीति आयोग ने रेलवे की इसलिए तारीफ की थी रेल हादसे कम हो गए हैं। लेकिन वो एक सपना ही रहा। कल शुक्रवार शाम को वो सपना टूट गया। महज शाम 6.50 से लेकर 7.10 बजे तक सबकुछ खत्म हो गया। इसलिए जो लोग रेलवे की तारीफों के पुल बांधते रहते हैं, उन्हें अपने बयानों पर विचार करना होगा। आगे बढ़ते हैं। इस हादसे पर सिलसिलेवार कुछ तथ्य सामने लाना जरूरी है।
पहले जानिए कल क्या हुआ
रेलवे के अधिकारियों ने बताया कि 12841 शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस शालीमार स्टेशन से दोपहर 3:20 बजे रवाना हुई और शाम 6:30 बजे बालासोर पहुंची। ट्रेन के लगभग 10 से 12 डिब्बे बहानगा के पास पटरी से उतर गए और लगभग 7:20 बजे विपरीत ट्रैक पर गिर गए।शाम 6:55 बजे, 12864 बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस, डाउन लाइन पर थी, शालीमार-चेन्नई कोरोमंडल एक्सप्रेस के पटरी से उतरे डिब्बों में जा घुसी। हादसे की चपेट में उस ट्रेन के तीन से चार डिब्बे आ गए। इसी दौरान वहां मालगाड़ी आ गई और वो भी इन दोनों ट्रेनों से टकरा गई।
बीस मिनट के अंतराल में ये हादसे हुए। धमाके की आवाज सुनकर आसपास के लोग पहुंच गए थे। लेकिन रेलवे के कर्मचारी मुस्तैद नहीं थे, क्योंकि जब दो ट्रेनें टकराईं तो मालगाड़ी को तो रोका ही जा सकता था लेकिन मालगाड़ी के टकराने से इस हादसे में ज्यादा नुकसान हुआ।
क्या सिग्नल फेल हुआ
बॉलीवुड फिल्मों में नायक-नायिका को अक्सर रेलवे ट्रैक पर सिग्नल नहीं दिखते लेकिन रेलवे अपने पायलट को सिग्नल के संकेत समझने की बाकायदा ट्रेनिंग देता है। यह अभी साफ नहीं है कि तीनों ट्रेनें जिन-जिन ट्रैक पर थीं, क्या उसका सिग्नल काम नहीं कर रहा था और वे टकरा गईं। जब एक ट्रेन डिरेल हो गई और उसके डिब्बे बगल के ट्रैक पर जा गिरे तो उसी समय सिग्नल को काम करना चाहिए था और वो कम से कम दोनों या बाद में मालगाड़ी को भी रोक सकता था। बालासोर से बहनागा स्टेशन बहुत दूर नहीं बताया जा रहा है। बीच में हाल्ट स्टेशन भी है, जहां रेलवे कर्मचारी होते हैं। रेल मंत्री का कहना है कि अभी कोई नतीजा नहीं निकाला जा सकता। जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा।कहां गया सुरक्षा कोष और उसका पैसा
रेलवे और लोकसभा की कार्यवाही से प्राप्त सूचना इस बारे में बहुत कुछ बताती है। 2017-18 के आम बजट में केंद्र की मोदी सरकार ने रेलवे के लिए राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (आरआरएसके) की स्थापना करते हुए इस मद में एक लाख करोड़ रुपये का विशेष प्रावधान किया था। इस तरह रेलवे बोर्ड को हर साल रेलवे सुरक्षा कार्यों पर 20,000 हजार करोड़ रुपए खर्च करने थे। 2020 में कोरोना महामारी व अन्य कारणों से रेलवे हर साल खर्च की जाने वाली तय राशि खर्च नहीं कर सका। चलिए मान लिया कि कोरोना काल में ट्रेनें भी बंद थीं तो आपका ध्यान सुरक्षा पर नहीं था। हालांकि वो एक बेहतर मौका था जब रेलवे अपनी ट्रेनों और ट्रैक की सुरक्षा पर बेहतर काम कर सकती थी।“
रेलवे खुद मानता है कि 90 फीसदी रेल दुर्घटनाएं पटरी से उतरने, टकराने और रेलवे क्रॉसिंग के कारण होती हैं। इसलिए आरआरएसके कोष यानी सुरक्षा कोष से रेलवे सुरक्षा कार्य प्राथमिकता के आधार पर क्यों नहीं कर रहा है।
क्या ये अभियान फर्जी था
फरवरी 2023 में, यूपी में दो मालगाड़ियों के बीच आमने-सामने की टक्कर के बाद रेलवे ने लोको पायलटों द्वारा पटरी से उतरने और सिग्नल को पार करने जैसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए एक महीने का सुरक्षा अभियान शुरू किया था।इस अभियान के तहत, रेलवे बोर्ड, जोनल रेलवे और डिवीजनों के वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि वे विभिन्न वर्गों, चालक दल के लॉबी, रखरखाव केंद्रों, कार्य स्थलों आदि का दौरा करें और सुरक्षित जांच और लागू करने के लिए "कार्य पद्धतियों की गहन समीक्षा" करें। दुर्घटनाओं या असामान्य घटनाओं को रोकने के लिए निर्धारित ऑपरेशन और रखरखाव के तरीके पर विचार किया जाए। ओडिशा के हादसे को देखते हुए रेलवे के ऐसे अभियानों पर अफसोस ही जाहिर कर सकते हैं, क्योंकि ये अभियान महज मीडिया का पेट भरने और अपनी वाहवाही के लिए किए जाते हैं।
हाल ही में वंदे भारत के पीएम मोदी के उद्घाटन समारोह में दिल्ली से पत्रकारों का दल रेलवे का जनसंपर्क विभाग लेकर गया था। इन आहलादित पत्रकारों ने लौटकर सोशल मीडिया पर फोटो वगैरह लगाकर रेलवे के जनसंपर्क विभाग को खुश कर दिया। लेकिन किसी पत्रकार ने रेलवे सुरक्षा पर कुछ भी नहीं लिखा।
क्या आप यह जानते हैं
चीन, जापान, कोरिया, यूएस, यूके समेत कई देशों में उच्चस्तरीय एंटी ट्रेन टक्कर सिस्टम काम करता है। लेकिन भारत में आज तक यह सिस्टम नहीं अपनाया जा सका है। कांग्रेस पार्टी के 70 साल माना बहुत खराब थे लेकिन भाजपा के नौ साल के कार्यकाल में भी इस सिस्टम को लागू नहीं कर सरकार ने वाहवाही मौका का गंवा दिया। बेशक भारतीय रेल विश्व का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है लेकिन बार-बार इसी जुमले को कहकर ऐसे लापरवाही वाले हादसों का बचाव नहीं किया जा सकता। हालांकि रेलवे का जनसंपर्क विभाग जब तब सुरक्षा कवच के नाम पर ऐसी जानकारी देता रहता है।बहरहाल, भारतीय रेलवे जो सुरक्षा कवच बना रहा है, उसमें कहा जा रहा है कि जब कोई लोको पायलट किसी सिग्नल को जंप कर लेता है, जो ट्रेन टक्करों का प्रमुख कारण है। ऐसे में यह सिस्टम लोको पायलट को सतर्क कर सकता है, उसके ब्रेक पर अपना नियंत्रण कर सकता है और ट्रेन को ऑटोमैटिक रूप से रोक सकता है। यह सिस्टम या सुरक्षा कवच यह भी जान लान लेता है कि उसी लाइन पर एक निर्धारित दूरी के भीतर दूसरी ट्रेन भी चल रही है या आ रही है। सुनने में यह सिस्टम काफी अच्छा लगता है लेकिन ओडिशा ट्रेन हादसे से पहले यह सिस्टम क्यों नहीं लागू किया जा सका।
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वंदे भारत, तेजस जैसी ट्रेनें आपको प्रचार तो दे सकती हैं, चुनाव में भी मदद कर सकती हैं लेकिन यात्रियों की सुरक्षा तो तब भी दांव पर लगी रहेगी। वंदेभारत और तेजस जैसी प्राइवेट ट्रेनों से पहले यात्रियों की सुरक्षा जरूरी है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने मार्च 2023 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सरकार ने राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (RRSK) को एक लाख करोड़ रुपये देने की घोषणा की है। इसमें हर साल 15,000 करोड़ रुपये भारत सरकार और बाकी 5,000 करोड़ रुपये रेलवे को जुटाने थे। इसमें रेलवे 2017-18 से 2020-21 के दौरान अपने फंड से 15775 करोड़ रुपए (5000 करोड़ रुपए सालाना) जमा कराने में नाकाम रहा।
हाल ही में रेलवे अधिकारियों ने कहा कि नीति आयोग ने आरआरएसके के तहत रेलवे सुरक्षा कार्यों के लिए भारतीय रेलवे की प्रशंसा की है। इसके आधार पर वित्त मंत्रालय ने 2022-23 और 2023-24 के लिए आरआरएसके के लिए 11,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। इसके अलावा आरआरएसके 2021-22 से 2025-26 (पांच साल) मद में कुल 45,000 करोड़ रुपये देगा। इससे रेलवे के सुरक्षा कार्य पूरे हो सकेंगे। लेकिन देखना है कि ओडिशा रेल हादसे के बाद इस पर कितना काम प्राथमिकता पर होगा।
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