वपकष एकत: ...इसलए नह ह सकत कगरस-आप क मल! 

आम आदमी पार्टी के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कांग्रेस दिल्ली पंजाब छोड़ दे तो हम मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उनके खिलाफ नहीं लड़ेंगे। यह बिल्कुल अव्यवहारिक और उद्वेलित करने वाला बयान है। कांग्रेस ने भी इस पर पलटवार किया है कि हम सौदेबाजी नहीं करते हैं। 

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी कांग्रेस को “जीरो” और “एक कांग्रेस थी।” कहकर उसका उपहास उड़ाया। एक वक्त में अरविंद केजरीवाल ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को जेल में डालने की बात कही थी।

इन सब को भूल भी जायें, तो भी लोकतंत्र और संविधान बचाने के नाम पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का मेल नैसर्गिक मेल संभव नहीं है। दोनों की रुचि, विषय और विचारों में जमीन आसमान का अंतर है।


नितीश कुमार की विपक्षी एकता के प्रयास सकारात्मक हैं मगर आम आदमी पार्टी विश्वसनीयता को कायम नहीं रख पा रही है। कर्नाटक सहित तमाम राज्यों के चुनावों में हमने उसकी कार्यशैली और नेताओं के बदले चरित्र-भूमिका को देखा है। शायद यही वजह है कि राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से मिलने का वक्त मांगे अरविंद केजरीवाल को डेढ़ महीने हो रहे हैं मगर वक्त नहीं मिला। 

हम आम आदमी पार्टी की राजनीति का विश्लेषण करें तो पाते हैं कि आप की राजनीति सीमित दायरे और सोच पर निर्भर है। मुफ्त की रेवड़ियों और प्रचार पर ही निर्भर है, जबकि कांग्रेस की राजनीति विस्तृत और राष्ट्रीय सोच के साथ समाजवादी लोकतांत्रिक भवनाओं पर आधारित है। कांग्रेस गांधी-नेहरू के विचारों को आत्मसात करने के साथ कदम बढ़ाती है जबकि आप की कोई विचारधारा नहीं है। 

वो सत्ता के लिए कहीं भगत सिंह, तो कहीं गांधी, तो कहीं कट्टर हिंदुत्व को अपनाती है। आम आदमी पार्टी शासित राज्यों में महात्मा गांधी की तस्वीर हटाकर उसकी जगह भगत सिंह की तस्वीर लगा दी जाती है मगर जब उन पर संकट आता है, तो वो गांधी की समाधि राजघाट पर शीश नवाते हैं। जहां वो सरकार में हैं, वहां वो जांच और इन्फोर्समेंट एजेंसियों का इस्तेमाल कांग्रेस नेताओं, मीडिया माध्यमों और विरोधियों के खिलाफ भाजपा की तरह करते हैं। वो भाजपा-अकालियों से लड़ते दिखते हैं मगर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करते हैं। वो सभी जगह कांग्रेस पार्टी को तोड़ते हैं। हाल में ही हमने जालंधर में देखा भी। यही वजह है कि उनका गठबंधन नहीं हो पा रहा है और जुबानी तीर चल रहे हैं। 

हमें याद है, देश में अन्ना आंदोलन का असर था। उससे निकले अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री कांग्रेस नेता शीला दीक्षित पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगाकर उन्हें हराया था मगर वो सत्ता के आंकड़े से दूर थे। उस वक्त 28 दिसंबर 2013 को कांग्रेस ने सांप्रदायिकता के खिलाफ धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करने के नाम पर आम आदमी पार्टी को बाहर से समर्थन दे अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनवाया था।

इसके बाद जिस तरह से सत्ता और प्रचार के लिए उन्होंने जो रास्ते अख्तियार किये, उसका लाभ दिल्ली के अलावा पंजाब में भी मिला। पंजाब में उन्होंने चार लोकसभा सीटें भी जीती थीं। सत्ता में आते ही उन्होंने भाजपा के बजाय कांग्रेस को खत्म किया, जबकि भाजपा-कांग्रेस दोनों से लड़ने की बात कहकर आगे बढ़े। कांग्रेस की अंतर्कलह और खुद को कट्टर ईमानदार बताकर चंडीगढ़ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप छाबड़ा और उनकी कांग्रेसी टीम के बूते चंडीगढ़ नगर निगम में सबसे अधिक पार्षद लाकर पंजाब में अपने लिए माहौल बनाया। इससे चंडीगढ़ में भाजपा को ही लाभ मिला, जैसे गुजरात में। पंजाब में कांग्रेस की कलह का लाभ उठा और महात्मा गांधी को किनारे कर भगत सिंह को नये रूप में दिखाकर लोकलुभावन वादों से सत्ता हासिल की।

पंजाब में आम आदमी पार्टी ने सत्ता संभालते ही पांच साल सरकार में रही कांग्रेस के नेताओं को टारगेट करना शुरू कर दिया। अकालियों और भाजपाइयों पर ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की कि उन्हें संकट पैदा हो। कांग्रेस को खत्म करने की रणनीति के तहत कांग्रेस के दो दर्जन नेताओं पर विजिलेंस और पुलिस के जरिए मुकदमें दर्ज किये। कई को जेल भेजा, जबकि उनकी सीधे कोई भूमिका नहीं थी। कांग्रेस नेताओं की सुरक्षा वापस ली, जिसके बाद सिद्धू मूसेवाला सहित एक दर्जन कांग्रेसी नेताओं की हत्यायें हो गईं। हाईकोर्ट की फटकार के बाद कुछ की सुरक्षा वापस की गई, जबकि अपनी और आप नेताओं की सुरक्षा कई गुना बढ़ा दी गई।

भारी बहुमत के मद में मुख्य विपक्षी कांग्रेस के नेताओं को विधानसभा सदन से लेकर सड़क तक जलील करने का कोई मौका नहीं छोड़ा। मीडिया को नियंत्रित करने की रणनीति अपनाई। यही वजह है कि पंजाब का कोई कांग्रेसी नेता आप के साथ किसी भी रिश्ते का समर्थक नहीं है। कमोबेश यही हालत दिल्ली में है। चूंकि दिल्ली में जांच और इन्फोर्समेंट एजेंसियां अरविंद केजरीवाल के पास नहीं हैं, इसलिए वो वहां जिन कांग्रेस नेताओं पर आरोप लगाते थे, उनके खिलाफ कुछ नहीं कर सके। वो न ही सीबीआई या उपराज्यपाल को कोई सबूत दे सके।

दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस नेताओं के काम न हों, इसके लिए उन्होंने सचिवालय में स्पष्ट निर्देश दिये गये हैं। यही कारण है कि दिल्ली कांग्रेस के नेता आम आदमी पार्टी के साथ खड़े होने को तैयार नहीं हैं। वो लगातार सवाल उठा रहे हैं।

कांग्रेस विरोधी ताकतों के साथ हर चुनाव में आम आदमी पार्टी खड़ी नजर आती है। खुद को कट्टर ईमानदार कहकर कांग्रेस सहित दूसरों को बेईमान साबित करने में लगे रहते हैं। भाजपा की तरह परिवारवादी का तमगा देने से नहीं चूकते। दूसरी तरफ आप के जो नेता भ्रष्टाचार के मामलों में जेल में हैं, उन सभी की शिकायत कांग्रेस नेताओं ने ही सबसे पहले की थी। इस वक्त पंजाब में जो आप के नेता भ्रष्टाचार, यौन शोषण और दूसरे आरोपों में घिरे हैं, वो शिकायतें-मुद्दे कांग्रेस के नेताओं ने ही उठाये हैं। वो आरटीआई के जरिए पंजाब और दिल्ली की आप सरकार को लगातार एक्सपोज कर रहे हैं। इससे आम आदमी पार्टी के नेताओं में भी कांग्रेस के प्रति सबसे अधिक गुस्सा है। 

कांग्रेस की चन्नी सरकार ने नशे के धंधे को लेकर शिरोमणि अकाली दल नेता बिक्रमजीत मजीठिया को जेल भेजा था मगर आप सरकार ने उसकी जमानत में मदद की। ये वही मजीठिया हैं, जिनका नाम लेकर अरविंद केजरीवाल ने ‘उड़ता पंजाब’ जैसे गंभीर आरोप लगाये थे और फिर अदालत में माफी मांगी थी। उसी तरह बेअदबी मामले में भी सरकार वहीं खड़ी है, जहां कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार थी।

यही वजह है कि दोनों दलों और वक्त की जरूरत के बावजूद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेता एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप से लेकर सौदेबाजी तक की बात करते नहीं थकते। यह विपक्षी एकता की न सिर्फ कोशिशों को झटका है बल्कि नैसर्गिक मेल भी नहीं है। यह मेल हुआ तो लंबा नहीं चल सकता।  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और उनके निजी विचार हैं)



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