--- नमाज पढ़ाने वालों को ₹15000, अजान देने वालों को ₹10000 प्रतिमाह सैलरी: बिहार की 1057 मस्जिदों को तोहफा लेख आप ऑपइंडिया वेबसाइट पे पढ़ सकते हैं ---
बिहार स्टेट सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड में पंजीकृत पेशइमाम (नमाज पढ़ाने वाला मौलवी) और मोअज्जिन (अजान देने वालों) के लिए फ़रवरी 2021 का महीना जाते-जाते खुशखबरी दे गया। बिहार स्टेट सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड अब 1057 मस्जिदों के उन सभी मोअज्जिनों और पेशइमामों को मानदेय देने जा रहा है, जो उसके तहत पंजीकृत हैं।
पेशइमाम को 15,000 रुपए प्रतिमाह और मोअज्जिन को 10,000 रुपए प्रतिमाह दिए जाएँगे। बिहार की राजधानी पटना में भी ऐसे 100 मस्जिदें हैं, जो बोर्ड के अंतर्गत रजिस्टर्ड हैं।
मानदेय देने के लिए अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की सचिव सफीना एएन, विभाग के निदेशक एएए फैजी, बोर्ड के अध्यक्ष मोहम्मद इरशादुल्लाह और सीईओ खुर्शीद सिद्दीकी ने समीक्षा बैठक भी की, जिसमें ये निर्णय लिया गया। इस सम्बन्ध में शनिवार (मार्च 6, 2021) को बड़ी बैठक होगी, जिसमें इस पर आधिकारिक मुहर लग जाएगी।
मानदेय देने का प्रस्ताव विभाग को उसी बैठक के बाद भेजा जाएगा। उधर बिहार स्टेट शिया वक़्फ़ बोर्ड भी 105 मस्जिदों के पेशइमाम और मोअज्जिनों को मानदेय दे रहा है। उसके अंतर्गत पेशइमाम को 4000 तो मोअज्जिन को 3000 रुपए प्रतिमाह की दर से मानदेय दिया जाता है।
सुन्नी बोर्ड से पूरे बिहार में 1057 मस्जिद रजिस्टर्ड हैं। पटना जंक्शन इमाम मस्जिद, फकीरबाड़ा, करबिगहिया जामा मस्जिद और कुम्हरार मस्जिद इनमें प्रमुख हैं। फ़िलहाल इन मस्जिदों के कर्मचारियों को स्थानीय मस्जिद कमिटी ही मानदेय या वेतन देती है। इसके तहत लोगों से ही 50-100 रुपए चंदा के रूप में लेकर इन्हें दिया जाता है।
उनका कहना है कि उन्हें जो मिलना चाहिए, उतना मानदेय नहीं हो पाता। फिर भी पेशइमाम को 6-8 हजार और मोअज्जिनों को 4-5 हजार रुपए प्रतिमाह मिल जाते हैं। दोनों स्थानीय मुस्लिमों के बच्चों को तालीम भी देते हैं। निकाह, मिलाद व अन्य मजहबी कार्यक्रमों से भी उनकी कमाई होती है।
सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष मोहम्मद इरशादुल्लाह ने कहा कि पेशइमाम को 15,000 रुपए प्रतिमाह और मोअज्जिन को 10,000 रुपए प्रतिमाह मानदेय के रूप में दिए जाने से उनका भला हो जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार भी मानदेय देना चाहती है। बोर्ड की बैठक से प्रस्ताव पारित करा कर विभाग को भेजा जाएगा। पश्चिम बंगाल, हरियाणा, केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में वहाँ के सुन्नी बोर्ड ऐसे मानदेय दे रहे हैं।
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