पिछले साल फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों की जाँच को लेकर विवादों में घिर चुकी दिल्ली पुलिस की तीखी आलोचना अब अदालत भी कर रही है। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अभियुक्त के कथित कबूलनामे के लीक होने की जाँच रिपोर्ट पर पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि यह 'आधा-अधूरा और बेकार काग़ज़ का टुकड़ा है।'
जामिया मिलिया इसलामिया के छात्र आसिफ़ इक़बाल तनहा की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने कहा, "क्या आप चाहते हैं कि मैं इस जाँच रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दूं, मैं कहूंगी कि यह बेकार काग़ज़ का टुकड़ा है, बल्कि मैं यह कहूंगी कि यह अदालत की अवमानना है कि अदालत ने आपसे आपकी अपनी रिपोर्ट की जाँच करने को कहा था और आपको लगा था कि यह राष्ट्रीय महत्व की चीज है और देखें कि आपने कैसी रिपोर्ट तैयार की है।"
क्या कहा अदालत ने
अदालत ने इसके बाद कहा कि यह विजिलेंस इनक्वायरी जन शिकायत की जाँच से भी बदतर है। अदालत ने कटाक्ष करते हुए कहा कि कल आप यह न कह दें कि यह इसी ऑफ़िस से लीक हुआ था।
दिल्ली पुलिस ने कबूलनामा लीक होने में अपना हाथ होने से इनकार कर दिया था। उसने कहा था कि यह पूरी फ़ाइल स्पेशल सेल ने नेशनल कैपिटल टेरीटरी प्रशासन और गृह मंत्रालय को भेजी थी। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने शिकायत की है कि उसका कथित कबूलनामा लीकर कर दिया गया और मीडिया का रिपोर्टर कहता है कि उसके हाथ में है और वह उसे पढ़ रहा है। तो आख़िर वह लीक किसने किया।
क्या कहना है याचिकाकर्ता का
अदालत ने यह भी कहा कि वह फ़ाइल कूरियर या डाक से नहीं भेजी गई थी, वह पुलिस विभाग का ही एक आदमी लेकर गया था और संबंधित व्यक्ति के हाथ में दिया था। ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि लीक कैसे हुआ।
याचिकाकर्ता आसिफ़ इकबाल तनहा ने अदालत में शिकायत की थी कि उसका कथित कबूलनामा ठीक उसी समय लीक हुआ जब उसने ज़मानत की याचिका दायर की थी। उसने आशंका जताई थी कि पूरी क़ानूनी प्रक्रिया ही ध्वस्त की जा रही है।
क्या कहना है पुलिस का
दिल्ली पुलिस के वकील ने अदालत से कहा कि पुलिस ख़ुद इससे परेशान है कि यह कबूलनामा कैसे लीक हो गया। यदि अदालत में यह साबित हो जाए कि यह काग़ज़ लीक किया गया था तो संबंधित व्यक्ति के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है। पुलिस का यह भी कहना है कि यदि रिपोर्टर के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई की गई तो सरकार पर यह आरोप लगेगा कि वह मीडिया को डरा-धमका रही है।
लेकिन तनहा के वकील ने कहा कि एक दूसरे मामले में जब मीडिया ने दिल्ली पुलिस की आलोचना की थी तो उसने उस मीडिया कंपनी के ख़िलाफ़ कार्रवाई की थी। एक दूसरे मामले में एक मीडिया कंपनी से कहा गया था कि वह कुछ भी प्रकाशित न करे।
पुलिस कमिश्नर एस. एन. श्रीवास्तव को लिखी गई चिट्ठी में एक ख़बर के हवाले से कहा गया है कि दिल्ली पुलिस ने एक आदमी पर दबाव डाल कर उमर खालिद के ख़िलाफ़ बयान लिया। पुलिस वालों ने उससे कहा कि यदि उसने यह बयान नहीं दिया तो उसे अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट यानी यूएपीए के तहत गिरफ़्तार कर लिया जाएगा।
इस चिट्ठी में इस तरह के फ़र्जी कबूलनामे के बारे में बताया गया है और आरोप लगाया गया है कि पुलिस वाले इस तरह के फ़र्जी कबूलनामा इसके पहले भी ले चुके हैं। इसे इससे समझा जा सकता है कि अंकित शर्मा मामले में दयालपुर पुलिस स्टेशन ने 4 कबूलनामा बिल्कुल एक सा दिया है।
इस चिट्ठी पर एक हज़ार से अधिक लोगों ने दस्तख़त किए हैं, जिसमें लेखक, बुद्धिजीवी, पत्रकार, अर्थशास्त्री, सामाजिक कार्यकर्ता और समाज के दूसरे वर्गों के लोग भी हैं। जिन्होंने दस्तख़त किए हैं, उनमें कुछ प्रमुख नाम हैं--इतिहासकार रामचंद्र गुहा, फ़िल्मकार अपर्णा सेन, पूर्व संस्कृति सचिव जवाहर सरकार, अर्थशास्त्री जयति घोष. पूर्व राज्यपाल मार्गरेट अल्वा, अकादमिक जगत के लोग ज़ोया हसन, निवेदिता मेनन, पत्रकार विद्या सुब्रमणियन, कलाकार किरण सहगल, शुद्धब्रत सेन वगैरह।
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