अमर्त्य सेन क्या शांति निकेतन परिसर की विवादित ज़मीन से बेदखल किए जाएँगे विश्व भारती विश्वविद्यालय ने नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को नोटिस जारी कर पूछा है कि 13 डिसमिल के प्लॉट पर कथित रूप से अवैध रूप से कब्जा किए जाने के कारण उनके खिलाफ बेदखली आदेश क्यों नहीं जारी किया जाए। इसी साल जनवरी में भी उनको नोटिस जारी किया गया था। तब प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने कहा था कि उन्हें समझ नहीं आता कि केंद्रीय विश्वविद्यालय अचानक से इतना सक्रिय क्यों हो गया है। उन्होंने कहा था कि उन्हें शांति निकेतन से भगाने की कोशिश की जा रही है।
बहरहाल, अब जो नोटिस जारी किया गया है उसमें अमर्त्य सेन से यही पूछा गया है कि क्यों न उनको वहाँ से बेदखल कर दिया जाए। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार उनको 24 मार्च तक नोटिस का जवाब देने और 29 मार्च तक केंद्रीय विश्वविद्यालय के संयुक्त रजिस्ट्रार और संपदा अधिकारी अशोक महतो के सामने व्यक्तिगत रूप से या एक प्रतिनिधि के माध्यम से दावे के समर्थन में साक्ष्य के साथ पेश होने के लिए कहा गया। उनको कहा गया है कि वह इसका सबूत पेश करें कि वह किसी भी भूखंड पर अनाधिकृत रूप से कब्जा नहीं कर रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार इसी नोटिस में साफ़ तौर पर कहा गया है कि यदि आप और आपके अधिकृत प्रतिनिधि उस तिथि पर उपस्थित होने में विफल रहते हैं तो मामले में एकतरफा फ़ैसला किया जा सकता है। 89 वर्षीय अमर्त्य सेन फिलहाल विदेश में हैं। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार उनके या उनके परिवार के सदस्यों से प्रतिक्रिया के लिए संपर्क नहीं किया जा सका।
बता दें कि अमर्त्य सेन को नोटिस जारी कर शांति निकेतन में करीब 7.6 कट्ठा जमीन वापस करने को कहा गया है। विश्वविद्यालय का दावा है कि जिस जमीन को लेकर अमर्त्य सेन को नोटिस दिया गया है वह जमीन उनके परिवार के स्वामित्व वाली संपत्ति का हिस्सा नहीं है।
अमर्त्य सेन केंद्रीय विश्वविद्यालय के इस तर्क को खारिज करते रहे हैं कि ये 7.6 कट्ठे उन 75 कट्ठों के अतिरिक्त हैं, जिन्हें विश्वभारती ने 1943 में उनके दिवंगत पिता आशुतोष सेन को पट्टे पर दिया था। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार इस संपत्ति को 2006 में सेन के नाम से म्यूटेशन किया गया।
म्यूटेशन तब हुआ जब नोबेल पुरस्कार विजेता ने तत्कालीन विश्वभारती के कुलपति को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि 99 साल के लीजहोल्ड को उनके नाम पर स्थानांतरित कर दिया जाए। विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
लेकिन विश्वभारती एस्टेट कार्यालय के प्रभारी संयुक्त रजिस्ट्रार द्वारा इसी साल जनवरी महीने में जारी नोटिस में कहा गया था कि सेन को कथित रूप से अवैध रूप से कब्जा की गई "अतिरिक्त 13 डिसमिल" ज़मीन जल्द से जल्द सौंपने चाहिए।
इसी की प्रतिक्रिया में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने कहा है कि शांति निकेतन में उनके पास जो जमीन है, उनमें से अधिकांश को उनके पिता ने 1940 के दशक में बाजार से खरीदा था, जबकि कुछ अन्य भूखंडों को पट्टे पर लिया था। सेन ने क़रीब दो महीने पहले पीटीआई से कहा था, 'यह मेरा आवास है जो 1940 के दशक में विश्वभारती से पट्टे पर ली गई जमीन पर बनाया गया था। जमीन हमें 100 साल के लिए पट्टे पर दी गई थी। कुछ जमीन मेरे पिता ने सभी नियमों और विनियमों का पालन करते हुए बाजार से खरीदी थी।'
वैसे, अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन अपनी खुली राय रखने के लिए लगातार सुर्खियों में रहे हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि 2024 का चुनाव बीजेपी के पक्ष में एकतरफा नहीं होने जा रहा है। इस चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों की खास भूमिका होगी।
अमर्त्य सेन ने पिछले साल एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि इस समय भारत के सामने सबसे बड़ा संकट 'राष्ट्र के पतन' का है। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि वह देश में असाधारण विभाजन देख रहे हैं। उन्होंने गिरफ़्तारियों के तौर-तरीक़ों पर सवाल उठाए। इसके साथ ही नफ़रत के माहौल को लेकर चिंता जताई थी।
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