एनसीईआरटी सिखों के बारे में गलत जानकारी दे रहीः एसजीपीसी

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने एनसीईआरटी पर अपनी किताबों में सिखों के बारे में गलत जानकारी देने का आरोप लगाया है। एक बयान में एसजीपीसी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने शुक्रवार को कहा कि एनसीईआरटी सिखों से जुड़े ऐतिहासिक विवरणों को गलत तरीके से पेश कर रही है। 

एनसीईआरटी इस समय जबरदस्त विवादों में है। हाल ही में मुगलों का इतिहास किताबों से हटाने की बात आई। फिर गांधी जी और हिन्दू महासभा, नाथूराम गोडसे और आरएसएस से जुड़े चैप्टर हटाने की बात सामने आई। इससे भारत की आजादी की लड़ाई की जानकारी एनसीईआरटी की किताबों में तोड़ मरोड़ कर पेश कर दी गई है। इन किताबों को पढ़ने वाले बच्चे अब यह नहीं जान सकेंगे कि देश की आजादी की लड़ाई में संघ का कोई योगदान नहीं था या लाल किला, ताजमहल या अन्य ऐतिहासिक इमारतें किस काल में बनीं।

एसजीपीसी ने इसी के मद्देनजर जब सिख इतिहास के नजरिए से इन किताबों को देखा तो हैरान रह गई। एसजीपीसी अध्यक्ष धामी ने कहा कि हाल ही में एनसीईआरटी ने श्री आनंदपुर साहिब संकल्प के बारे में 12वीं क्लास की राजनीति विज्ञान की किताब 'स्वतंत्रता के बाद से भारत में राजनीति' के अध्याय 8, 'क्षेत्रीय आकांक्षाएं' के बारे में भ्रामक जानकारी दी है, जिसने सिख समुदाय की भावनाओं को आहत किया है। श्री आनंदपुर साहिब प्रस्ताव की व्याख्या करते हुए, सिखों को अलगाववादी के रूप में चित्रित करना बिल्कुल भी उचित नहीं है। इसलिए एनसीईआरटी को इस तरह के अत्यधिक आपत्तिजनक उल्लेखों को हटा देना चाहिए। धामी ने कहा-

यह दुख की बात है कि सारे बदलाव मौजूदा केंद्र सरकार के हिसाब से किए जा रहे हैं। खासकर अल्पसंख्यकों के बारे में, तमाम चैप्टर खत्म किए जा रहे हैं और मनमाना पाठ्यक्रम बनाया जा रहा है। इसी क्रम में श्री आनंदपुर साहिब प्रस्ताव को 'स्वतंत्रता के बाद से भारत में राजनीति' पुस्तक में गलत व्याख्या की गई है।


एसजीपीसी अध्यक्ष ने कहा कि श्री आनंदपुर साहिब प्रस्ताव एक ऐतिहासिक दस्तावेज है जिसमें कुछ भी गलत नहीं है। उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव राज्य के अधिकारों और राज्य के संघीय ढांचे को मजबूत करने की बात करता है और दुख की बात है कि आज भी स्थिति ऐसी ही है।

उन्होंने कहा कि राज्यों के अधिकारों और हितों की अनदेखी की जा रही है। धामी ने कहा- ऐसा लगता है कि हिंदू राष्ट्र की भाषा बोलने वालों को जानबूझ कर फायदा पहुंचाया जा रहा है। अल्पसंख्यकों के मुद्दों को हल करने के बजाय गलत धारणा बनाकर उनके खिलाफ एक नैरेटिव चलाया जा रहा है।



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