राहुल गांधी ने दावा किया है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस 150 सीटें जीतेगी। कर्नाटक चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस पार्टी के हौसले बुलंद हैं। अब वह अधिक संगठित, ऊर्जावान और जीत के प्रति लालायित दिखने लगी है। दूसरी तरफ कर्नाटक की हार से भाजपा की गुटबाजी खुलकर सामने आ गई है। कर्नाटक चुनाव में आखिरी 10-12 दिन नरेंद्र मोदी ने ताबड़तोड़ रैलियां की थीं। पूरे चुनाव प्रचार और नैरेटिव बनाने की कमान खुद मोदी ने संभाल रखी थी। नरेंद्र मोदी द्वारा अपनी पूरी साख दांव पर लगाने के बावजूद कर्नाटक में भाजपा बुरी तरह पराजित हुई।
कर्नाटक की हार से भाजपा का दक्षिणी द्वार ही बंद नहीं हुआ बल्कि कारपोरेट मीडिया द्वारा बनाई गई नरेंद्र मोदी की अपराजेय और करिश्माई छवि को भी बट्टा लगा है। इसी छवि को दुरुस्त करने के लिए पहले ऑस्ट्रेलिया और पापुआ न्यू गिनी की विदेशी धरती पर इवेंट आयोजित किए गए। मीडिया ने बढ़ा चढ़ाकर मोदी की 'विश्वगुरु' छवि परोसा। इसके बाद 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर पूरे दिन लाइव प्रसारण के जरिए प्रधानमंत्री को एक धर्माधिकारी की तरह पेश किया गया। ब्राह्मणवादी कर्मकांड के बीच नरेंद्र मोदी का महिमामंडन करने में गोदी मीडिया का इतना पतन हुआ कि उसने धर्मनिरपेक्ष संविधान की मूल भावना की भी परवाह नहीं की।
सवाल यह है कि राहुल गांधी का मध्य प्रदेश के बारे में 150 सीटें जीतने का दावा कितना मजबूत है आखिर राहुल गांधी किस आधार पर यह दावा कर रहे हैं राहुल गांधी पहले इस तरह के दावे नहीं करते थे ।
करीब पांच माह तक चलने वाली, दक्षिण में कन्याकुमारी से लेकर उत्तर में जम्मू कश्मीर तक लगभग 4000 किलोमीटर की पैदल यात्रा में राहुल गांधी ने देश को और लोगों ने राहुल गांधी को बहुत करीब से देखा-समझा। महात्मा गांधी की तरह भारत दर्शन करते हुए उन्होंने देश के लोगों से सीधा संवाद किया। उनकी समस्याओं और परेशानियों को जाना समझा। इस प्रक्रिया में उन्होंने 'शक्ति की मौलिक कल्पना' का संधान किया। इस यात्रा पर निकलने से पहले उन्होंने अपने भीतर के सारे अंतर्द्वंद्व पर विजय प्राप्त की। इसके बाद निर्भय राहुल गांधी ने 'डरो मत' के नारे के साथ ऐलान किया कि वे वर्तमान सियासत से उपजे 'नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने आए हैं।'
इस यात्रा के दरमियान आयोजित होने वाली सभाओं में राहुल गांधी ने दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों को पुरजोर तरीके से उठाया। संघ, सावरकर और सांप्रदायिकता के खिलाफ राहुल गांधी मुखर रहे। यात्रा के दौरान सामाजिक न्याय की जरूरत के प्रति राहुल गांधी का नजरिया मजबूत होता गया। चुनावी जोड़-तोड़ से बेखौफ राहुल गांधी ने बेहिचक आदिवासियों, दलितों, वंचितों के हक में अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। इसी का नतीजा है कि इन समुदायों में राहुल गांधी की लोकप्रियता निरंतर बढ़ती जा रही है। तमाम सर्वे भी इस बात की ताकीद कर रहे हैं।
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अगर तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता सवर्ण समाज में आज भी बरकरार है लेकिन दलित, पिछड़े और आदिवासियों में राहुल गांधी ने ज्यादा विश्वास हासिल किया है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश में राहुल गांधी कांग्रेस की जीत के प्रति आश्वस्त हैं।
अन्य राज्यों की तरह मध्यप्रदेश में भी माना जाता है कि आरक्षित सीटों पर जीत हासिल करने वाली पार्टी ही सत्ता में पहुंचती है। मध्य प्रदेश में 35 सीटें अनुसूचित जाति और 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। कुल 82 सीटें दलित, आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं। पिछले तीन चुनावों में भाजपा को 60 से ज्यादा आरक्षित सीटों पर जीत हासिल हुई थी। लेकिन 2018 में केवल 34 सीटों पर उसे कामयाबी मिली। इस चुनाव में कांग्रेस को 114 जबकि भाजपा को 109 सीटें प्राप्त हुईं।
दलितों की आरक्षित सीटों पर भाजपा की हार का बड़ा कारण एससी एसटी एक्ट को कमजोर करना और 2 अप्रैल 2018 का आंदोलन बना। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के चंबल संभाग में आंदोलनकारी करीब एक दर्जन दलित नौजवानों की पीठ पर सवर्ण सामंतियों ने गोली मारी थी। आरएसएस और सामंतवाद के गढ़ मध्य प्रदेश में पहली बार दलितों ने अपने स्वाभिमान और सम्मान के लिए संघर्ष किया था। भाजपा सरकार ने तमाम आंदोलनकारियों पर मुकदमे दर्ज किए थे। कांग्रेस ने इन मुकदमों को वापस लेने का वादा किया था।
राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मध्य प्रदेश में ओबीसी महासभा के प्रतिनिधियों से मिलकर जाति जनगणना की मांग का समर्थन किया। इतना ही नहीं उन्होंने यूपीए सरकार के समय जातिगत आंकड़े जारी नहीं करने के लिए माफी भी मांगी। मध्य प्रदेश में 49 फ़ीसदी ओबीसी हैं। प्रदेश की आधी आबादी पिछले तीन चुनावों में भाजपा के साथ रही है। 2003 के चुनाव में ओबीसी लोधी समाज की उमा भारती के नेतृत्व में हुए चुनाव में भाजपा ने 230 में से 173 सीटों पर बड़ी कामयाबी हासिल की थी। उमा भारती के बाद बाबूलाल गौर और उसके बाद शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। ओबीसी मुख्यमंत्रियों के जरिए भाजपा पिछड़ी जातियों को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही। लेकिन पिछले कुछ सालों में बढ़ते हिंदुत्व के आक्रमण के कारण भाजपा का यह जनाधार खिसक रहा है।
ब्रह्मणवादी कर्मकांड और अंधविश्वास के खिलाफ तथा संवैधानिक अधिकारों के लिए मध्यप्रदेश में तमाम ओबीसी संगठन सक्रिय हैं। इन संगठनों के बीच कांग्रेस ने पैठ बढ़ाई है। सामाजिक न्याय के प्रति राहुल गांधी की प्रतिबद्धता पिछड़ों के बीच कांग्रेस को मजबूत कर रही है। अनारक्षित 148 सीटों में से 60 सीटें ओबीसी नेताओं के पास हैं। इनमें 38 पर भाजपा और 21 पर कांग्रेस के प्रतिनिधि हैं। चंबल संभाग से लेकर बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र में ओबीसी की बड़ी आबादी है। 13 जिलों की 61 सीटों पर ओबीसी हार-जीत तय करते हैं। 2018 में इन सीटों में से 40 पर भाजपा और 19 पर कांग्रेस जीती। जबकि एक-एक सीट पर बसपा और सपा ने जीत हासिल की।
मध्य प्रदेश में लोधी, कुर्मी, यादव, तेली, गुर्जर, पवार सहित 93 ओबीसी जातियां और 275 उपजातियां हैं। करीब 18 साल से भाजपा सरकार में ओबीसी मुख्यमंत्री हैं। लेकिन मध्य प्रदेश में मंडल कमीशन के उलट ओबीसी का केवल 14 फीसदी आरक्षण है। 2019 में कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था। कांग्रेस ने रायपुर अधिवेशन में सामाजिक न्याय के विभिन्न मुद्दों को लागू करने का वादा किया है। जाति जनगणना से लेकर निजी क्षेत्रों और उच्च न्यायपालिका में आरक्षण का मुद्दा ओबीसी समाज के बीच कांग्रेस को मजबूत बनाएगा।
आज पूरे देश में करीब 8 से 9 फ़ीसदी आदिवासी आबादी है। पिछले साल भाजपा ने आदिवासी द्रोपदी मुर्मु को राष्ट्रपति बनाया। इसके पीछे भाजपा की विशुद्ध चुनावी रणनीति है। इसीलिए भाजपा और आरएसएस ने एक लाख आदिवासी बहुल गांवों में द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने का संदेश दिया था। इसके लिए बाकायदा जश्न का एक इवेंट आयोजित किया गया। मध्य प्रदेश में 21 फ़ीसदी आदिवासी आबादी है। पिछले साल मध्यप्रदेश में जनजातीय गौरव दिवस के आयोजन में नरेंद्र मोदी ने खास तौर पर शिरकत की थी। लेकिन इस साल 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं किया गया।
इसे मुद्दा बनाकर कांग्रेस सहित 20 विपक्षी दलों ने इस समारोह का बहिष्कार किया। कांग्रेस ने आदिवासियों और महिला के सम्मान का सवाल उठाकर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया। जाहिर तौर पर भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। कांग्रेस को इसका फायदा मिलेगा।
राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान आरएसएस पर हमला करते हुए आदिवासियों को भारतीय सभ्यता का निर्माता कहा था। उन्होंने कहा कि संघ इन्हें बनवासी कहता है। यानी संघ आदिवासियों को जंगली मानता है। संघ चाहता है कि आदिवासी विकास में भागीदार ना हों। आदिवासियों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए राहुल गांधी ने उन्हें इस देश का मूलनिवासी बताया। राहुल गांधी की बढ़ती विश्वसनीयता के चलते कर्नाटक की सुरक्षित 15 आदिवासी सीटों में कांग्रेस ने 14 पर जीत दर्ज की। जबकि भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। मध्य प्रदेश में 16 फ़ीसदी दलित, 21 फीसदी आदिवासी और 8 फीसदी अल्पसंख्यक आबादी है। इस 45 फीसदी आबादी में पिछले दिनों कांग्रेस की पहुंच बढ़ी है। पर क्या ये चुनावी वोट में तब्दील हो पायेगा
(लेखक दलित चिंतक हैं)
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