किरण रिजिजू से कानून मंत्रालय छिना, अर्जुन मेघवाल को मिला

राष्ट्रपति भवन ने गुरुवार को एक विज्ञप्ति में कहा कि केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू को कानून और न्याय विभाग से हटा दिया गया है और उन्हें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय सौंपा गया है। अर्जुन राम मेघवाल को रिजिजू के स्थान पर उनके मौजूदा विभागों के अलावा कानून और न्याय मंत्रालय में राज्य मंत्री के रूप में स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया है।

मेघवाल, जो राजस्थान से हैं, संसदीय मामलों और संस्कृति राज्य मंत्री भी हैं। 

क्यो हटाए गए रिजिजू

रिजिजू और न्यायपालिका के रिश्ते कभी अच्छे नहीं थे। रिजिजू का न्यायपालिका से खुला टकराव मोदी सरकार की मुसीबतें बढ़ाता गया। रिजिजू ने न्यायपालिका के प्रति खुले तौर पर टकराव वाला रवैया अपनाया था। उन्होंने बार-बार जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को "अपारदर्शी", "संविधान से अलग" और "दुनिया में एकमात्र प्रणाली जहां जज अपने परिचित लोगों को नियुक्त करते हैं" कहा था। हालांकि उन्होंने कहा था कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच कोई टकराव नहीं है, लेकिन इस बात पर भी जोर दिया कि जजों को न्यायिक आदेशों के माध्यम से नियुक्त नहीं किया जा सकता है और यह सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। दरअसल, उन्होंने जोर देकर कहा था कि न्यायिक नियुक्ति न्यायपालिका का कार्य नहीं है और इसकी प्राथमिक भूमिका मामलों को तय करना है।

रिजिजू के बयानों को व्यापक मीडिया कवरेज मिलता था। सरकार समर्थित मीडिया ने इसे हमेशा सरकार बनाम न्यायपालिका की लड़ाई बताकर पेश किया। लेकिन यह कहना मुश्किल है कि क्या उनके नजरिए का उनके पोर्टफोलियो में बदलाव से कोई लेना-देना है या नहीं।  एक यह भी सवाल उठ रहा है कि पीएम मोदी अपने मंत्रियों के काम काज पर नजर रखते हैं, ताकि वे अच्छा प्रदर्शन कर सकें। लेकिन यह साफ नहीं है कि रिजिजू ने कोई ऐसी गतिविधि तो नहीं की जो पीएम मोदी की नजर में आ गई हो। बहरहाल, राजधानी में कयासबाजी शुरू हो गई है।

दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट और भारत के चीफ जस्टिस ने रिजिजू के बयान को कभी महत्व नहीं दिया और पूरी बहस में शामिल होने से इनकार कर दिया है। रिजिजू ने बयानों के जरिए न्यायपालिका पर दबाव बनाने की कोशिश की, जिससे मोदी सरकार की घोर बेइज्जती के कई मामले सामने आते हैं। इधर सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसले भी सरकार को परेशान करने वाले थे।

सुप्रीम कोर्ट पर अकेले रिजिजू हमलावर नहीं थे, भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी कई बार न्यायपालिका पर हमला बोला गया। आमतौर पर उपराष्ट्रपति जैसे पद पर बैठा शख्स न्यायपालिका के संबंध में हद दर्जे की गिरी हुई बयानबाजी नहीं करता है। लेकिन धनखड़ के बयान न सिर्फ न्यायपालिका, बार में बल्कि आम लोगों में भी पसंद नहीं किए गए। 

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा दिल दिखाते हुए अभी सोमवार को ङी न्यायपालिका और कॉलिजियम प्रणाली पर अपनी विवादास्पद टिप्पणी के लिए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और रिजिजू के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन (बीएलए) की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी। हाईकोर्ट में अपनी याचिका में, वकीलों की संस्था ने आरोप लगाया कि रिजिजू और धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम के खिलाफ सार्वजनिक रूप से किए गए अपने आचरण और बयानों के माध्यम से संविधान में विश्वास की कमी दिखाते हुए खुद को संवैधानिक पदों पर रखने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया।

बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने पिछले साल रिजिजू और धनखड़ द्वारा दिए गए कई बयानों का हवाला दिया, जो जजों के चयन तंत्र और दोनों के बीच शक्तियों के विभाजन को लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच चल रहे टकराव को बताते हैं।

धनखड़ ने कॉलिजियम सिस्टम पर भी सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को रिमाइंडर के साथ जवाब दिया कि कॉलिजियम प्रणाली जमीनी कानून है जिसका पालन सरकार को "टू ए टी" करना चाहिए।



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