उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगे के एक साल बाद जाँच कहाँ पहुँची और क्या दंगा पीड़ितों को न्याय मिला दंगे में 53 लोगों की जानें गई थीं और गई बेघर हुए थे। भारी नुक़सान पहुँचा था। देश की राजधानी में दंगे हुए थे, कथित तौर पर देश की सबसे ज़्यादा सक्रिय पुलिस है और पुलिस सीसीटीवी जैसे साक्ष्यों का दावा करती रही थी तो उम्मीद थी कि पीड़ितों को न्याय जल्द मिलेगा लेकिन क्या ऐसा हुआ
पीड़ितों की मानें तो उनके घाव तो कभी भरेंगे ही नहीं क्योंकि जिन्होंने अपनों को खोया है उसकी भरपाई मुमकीन नहीं है। ऐसे में उनकी आपत्तियों और शिकायतों से अलग यदि पुलिस के दावों पर ही विश्वास करें तो अब तक दर्ज किए गए 755 मामलों में से 303 मामलों पर 'संज्ञान' लिया गया है। पुलिस क़रीब 400 मामलों में कार्रवाई कर 1825 लोगों को गिरफ़्तार कर चुकी है।
पुलिस के अनुसार आरोपियों की पहचान मुख्य तौर पर 945 सीसीटीवी फुटेज और कई स्रोतों से प्राप्त वीडियो रिकॉर्डिंग के आधार पर की गई। इसमें मोबाइल की रिकॉर्डिंग भी शामिल थी। पुलिस ने ही दावा किया है कि 755 मामलों में से 349 में चार्जशीट दायर की जा चुकी है और इसमें से 303 को संज्ञान में लिया जा सका है। पुलिस ने सोमवार को दावा किया कि गिरफ़्तार किए गए 1825 लोगों में से 869 हिंदू और 956 मुसलिम हैं। जाहिर तौर पर इन आरोपियों में 'पिंजरा तोड़' की सदस्यों देवांगना, नताशा और जेएनयू व जामिया के उन छात्रों का भी नाम होगा जिनको इस मामले में आरोपी बनाया गया है।
दिल्ली पुलिस के एक प्रवक्ता ने कहा है कि नंबर ख़ुद ही बयाँ करते हैं- हमारी जाँच निष्पक्ष रही है, विश्वसनीय, ठोस और वैज्ञानिक सबूतों पर निर्भर है।
बता दें कि पुलिस जिस जाँच को निष्पक्ष बता रही है उसकी जाँच पर सवाल उठते रहे हैं। पिछले साल 26 फ़रवरी को ही अदालत ने भी इस पर सवाल उठाया था और इस पर पुलिस के रवैये पर हाई कोर्ट ने सख्त नाराज़गी जताई थी। कोर्ट की यह नाराज़गी बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के कथित नफ़रत वाले भाषण को लेकर भी थी।
पिछले साल 26 फ़रवरी को सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा था कि कपिल मिश्रा के उस भाषण वाले वीडियो की जाँच हो जिसके बाद हिंसा भड़की थी।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस तलवंत सिंह की बेंच ने तुषार मेहता से यह भी कहा था कि वह पुलिस कमिश्नर को सलाह दें कि बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के कथित नफ़रत वाले बयान पर एफ़आईआर दर्ज की जाए। हाई कोर्ट ने तो यहाँ तक कह दिया था कि हम इस देश में एक और 1984 नहीं होने दे सकते हैं। हालाँकि, इस मामले में कार्रवाई आगे होने से पहले ही जज का ट्रांसफर हो गया था और फिर वह मामला बाद में ख़त्म हो गया था। उन पर कोई केस नहीं हुआ था।
मई महीने में दिल्ली दंगों के एक मामले में भी दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी और कहा था कि मामले की जाँच एकतरफ़ा है। दिल्ली दंगों से जुड़े मामले में पुलिस 'पिंजरा तोड़' की सदस्यों देवांगना, नताशा के अलावा सफ़ूरा ज़रगर, मीरान हैदर और कुछ अन्य लोगों को भी गिरफ़्तार कर चुकी है। ये सभी लोग दिल्ली में अलग-अलग जगहों पर सीएए, एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ हुए विरोध-प्रदर्शनों में शामिल रहे थे।
दिल्ली दंगे में गिरफ़्तार कई लोगों ने आरोप लगाए थे कि उन्हें मुसलिम होने के कारण दिल्ली दंगा में फँसाया गया। दिल्ली दंगे मामले में पाँच महीने से ज़्यादा जेल में रहे इलियास नाम के शख्स ने 'द वायर' से कहा था कि उनसे कहा गया था कि अगर वह दंगे से जुड़े वीडियो में 10 मुसलिमों के नाम बता देंगे तो उन्हें रिहा कर दिया जाएगा।
जाँच पर इसलिए भी सवाल उठे थे कि दिल्ली पुलिस ने एक मामले में जो केस दर्ज किया था उसमें से 12 आरोपियों में से 9 आरोपियों के बयान एक समान थे।
यह मामला जुड़ा है दिल्ली दंगे के दौरान 26 फ़रवरी को 20 वर्षीय वेटर दिलबाग नेगी की हत्या से। इसके 12 आरोपियों के बयानों की पड़ताल 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने की और पाया कि 12 में से 9 आरोपियों के बयान क़रीब-क़रीब एक-एक वाक्य और शब्द समान हैं। बता दें कि जाँच के लिए दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच ने तीन विशेष जांच टीमें गठित की थीं।
'द प्रिंट' की रिपोर्ट के अनुसार, लंबित जाँच के बारे में बात करते हुए एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, 'मामलों की संवेदनशीलता और कोरोना के समय को ध्यान में रखते हुए जाँच बहुत तेजी से आगे बढ़ी है। हम 400 से अधिक मामलों में गिरफ्तारी करने में सक्षम हैं।' उन्होंने कहा कि उन्होंने 120 मामलों में पूरक आरोप पत्र भी दाखिल किए हैं। अन्य मामलों की जाँच जारी है।
दंगे पिछले साल 23 फरवरी को शुरू हुए थे और 25 फ़रवरी तक तीन दिनों तक चले थे। पूर्वोत्तर दिल्ली की गलियों में लोगों ने लाठी-डंडों और हथियारों से लैस होकर वाहनों और दुकानों में आग लगा दी थी। पूजा स्थल सहित निजी संपत्तियों में तोड़फोड़ की गई थी। सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र जाफराबाद, वेलकम, सीलमपुर, भजनपुरा, ज्योति नगर, करावल नगर, खजुरी खास, गोकलपुरी, दयालपुर और न्यू उस्मानपुर थे।
अब यदि दंगा पीड़ितों की मानसिक पीड़ा, अवसाद, और आजीविका के नुक़सान के बाद ज़िंदगी के लिए उनके संघर्ष की दास्ताँ को भी शामिल किया जाए तो उन्हें कितना न्याय मिला है, इसका अंदाज़ा लगाना ज़्यादा मुश्किल नहीं है।
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